महिलाओं को क्यों नहीं दिया जाता अंतिम संस्कार का अधिकार
भविष्य पुराण, स्कंद पुराण और वराह पुराण में इस बात का उल्लेख है कि श्री कृष्ण ने स्वयं अपने पुत्र सांबा को कोढ़ी होने का श्राप दिया था। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए सांबा ने सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था।
महात्मा विदुर महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे। इन्हें यमराज का अवतार भी माना गया है। महात्मा विदुर ने देश, काल और परिस्थिति के अनुसार, लाइफ मैनेजमेंट के कई सूत्र बताए हैं।
खाना खाते समय यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो हम लंबे समय तक शक्तिशाली और निरोगी बने रह सकते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने प्राग्ज्योतिषपुरी के राजा नरकासुर का वध किया था। नरकासुर ने 16 हजार स्त्रियों को बंदी बनाया था। नरकासुर के मरते ही वे सभी स्वतंत्र हो गईं। श्रीकृष्ण ने उन सभी के साथ विवाह किया। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण की 16 हजार रानियां हुईं।
कहा जाता है हनुमान भक्तों पर शनिदेव का कभी प्रकोप नहीं होता। माना जाता है कि सारंगपुर का कष्टभंजन हनुमान मंदिर बहुत चमत्कारी है और यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यदि कुंडली में शनि दोष हो तो कष्टभंजन हनुमान के दर्शन और पूजा-अर्चना करने मात्र से सभी दोष खत्म
सनातन धर्म में भगवान शंकर को देवों के देव महादेव कहकर संबोधित किया जाता है। वेदों के अनुसार भगवान शंकर को निर्गुण निराकार रूप में लिंग के रूप में पूजा जाता है। अध्यात्मिक रूप से मूलतः शिव ही एक मात्र धत घट के वासी परमात्मा परमेश्वर हैं। पुराणोक्त दृष्टि के अनुसार पृथवी लोक पर शक्तिपुंज स्व
1585 ई. में बनारस से आए मशहूर व्यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में जब औरंगजेब का शासन काल चल रहा था तो उसने इस मंदिर को तोड़वा दिया और मंदिर के ध्वंसावशेष पर मस्जिद का निर्माण करवाया जिसका नाम ज्ञान वापी मस्जिद रखा। आज भी यह मस्जिद विश्वनाथ मंदिर से एकदम सटी हुई है
सुदर्शन चक्र को स्वयं की शक्ति पर अभिमान हो गया था और भगवान श्री कृष्ण ने उनके अभिमान को दूर करने के लिए श्री हनुमान जी की सहायता ली थी। सुदर्शन चक्र को यह अभिमान हो गया था कि उसने इंद्र के वज्र को निष्क्रिय किया था। वह लोकालोक के अंधकार को दूर कर सकता है। भगवान श्री कृष्ण अतंत उसकी ही सहा
हरिकथा सुनने से पहले ध्यान रखें ये बात तभी पुण्य के भागी बनेंगे आप
महात्मा भीष्म आदर्श पितृभक्त, आदर्श सत्यप्रतिज्ञ, शास्त्रों के महान ज्ञाता तथा परम भगवद् भक्त थे। इनके पिता भारतवर्ष के चक्रवर्ती सम्राट महाराज शान्तनु तथा माता भगवती गंगा थीं। महर्षि वसिष्ठ के शाप से ‘द्यौ’ नामक अष्टम वसु ही भीष्म के रूप में इस धरा धाम पर अवतीर्ण हुए थे।