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मध्य प्रदेश

अपराध की अंधी गलियों में बिखेरी शिक्षा की रोशनी

इंदौर ! कहते हैं अकेला चना कभी भाड नहीं फोड़ सकता, लेकिन राजू सैनी नाम के शख्स ने अकेले ही वो कमाल कर दिखाया कि जो देखता है वही दंग रह जाता है।

अपराध की अंधी गलियों में बिखेरी शिक्षा की रोशनी

इंदौर !   कहते हैं अकेला चना कभी भाड नहीं फोड़ सकता, लेकिन राजू सैनी नाम के  शख्स ने अकेले ही वो कमाल कर दिखाया कि जो देखता है वही दंग रह जाता है। उसने इंदौर की आपराधिक मानी जाने वाली बस्तियों में न सिर्फ शिक्षा का अलख जगाया बल्कि मुफलिसी में घिरे परिवारों के एक हजार से ज्यादा युवाओं को सरकारी नौकरियों से भी जोड़ा। आज इन बस्तियों की कायापलट हो चुकी है।
बात करीब 13 साल पहले से शुरू होती है, जब पूरे इंदौर शहर में अपराध के लिए मालवा मिल इलाके में निर्धन वर्ग की चार बस्तियां पंचम की फेल, गोमा की फेल, लाला का बगीचा और कुलकर्णी भट्टा बदनाम थी। यहाँ के बच्चे अपराध, चोरी-चकारी, झगड़े-टंटे, नशा, मारपीट और आए दिन पुलिस की दबिश के बीच बड़े हो रहे थे। वे कुछ दिनों स्कूल जाने के बाद अनजाने ही अपराध की दलदल में फंस जाते और फिर पुलिस रिकार्ड में उनका नाम चढ़ जाया करता। रात की बात तो छोडिए, दिन में भी कोई यहां से गुजरना नहीं चाहता था।
इसी दौरान पंचम की फेल में रहकर चंद बच्चों के साथ स्कूल की पढाई करने वाले राजू सैनी के आसपास भी यही आपराधिक माहौल था। राजू के घर की हालत भी अच्छी नहीं थी। पिता ऑटो चलाते थे और उसी से पूरा घर चलता था। राजू के बाकी दोस्तों ने स्कूल छोड दिया था पर  राजू कुछ कर गुजरना चाहता था। वह माहौल से लडते हुए 8वीं कक्षा तक पहुंच गया। पर अब उसका रास्ता आसान नहीं था। दिन-रात मोहल्ले में वही सब चलता रहता तो राजू अपनी किताबें लेकर वहां से दूर सरकारी नेहरु पार्क पंहुच जाता और वहीं किसी पेड़ के नीचे बैठकर पढता रहता। कभी-कभी तो पूरे दिन वह वहीँ पढता। इस तरह उसने स्नातक तक पढाई कर ली और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा। उसने अपनी पढाई के साथ ही अब मोहल्ले के दूसरे बच्चों को भी पढऩे का मन बनाया। जगह तो कहीं थी नहीं तो बगीचे में ही निशुल्क कक्षाएं लगनी शुरू हो गईं। ऊपर आसमान और नीचे धरती. लोगों ने इसका खूब मजाक भी बनाया।
2001 में पहली बार प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पांच स्नातक विद्यार्थियों से शुरुआत हुई और पहली ही बार में राजू के पांच में से चार विद्यार्थी चुन लिए गए। दो रेल्वे में, एक पुलिस में और एक प्राध्यापक बन गया। यह बात इन बस्तियों में देखते ही देखते पंहुच गई। अब तक जहाँ लोग राजू के काम का मजाक बनाते थे, वहीं उन चारों के साथ राजू का जोरदार स्वागत किया गया। ढोल-नगाड़ों से जूलुस निकाला गया। इससे राजू को तो अपने काम पर यकीन बढ़ा ही, मोहल्ले के लोगों की सोच भी तेजी से बदली। उन्हें लगा कि अपराध की इस लिजलिजी काली दुनिया के बाहर भी एक चमकीला आसमान उनका इंतज़ार कर रहा है. अब राजू ने परिस्थितियों में आकर स्कूल छोड़ देने वाले बच्चों को भी जोडऩा शुरू किया।
2003 में राजू का काम आसान हो गया। अब नेहरु पार्क में करीब 40 बच्चे उससे पढने आने लगे. इस तरह बढ़ते-बढ़ते 13 सालों में यह आंकड़ा बारह सौ तक पंहुच गया है. इनमें से एक हजार से ज्यादा विद्यार्थी अच्छी सरकारी नौकरियों में लग लग चुके हैं, लेकिन अब वे हर साल अपने काम में से छुट्टी लेकर राजू सर की कोचिंग में कुछ समय के लिए पढाने जरुर आते हैं. शायद यही राजू के लिए उनकी गुरु दक्षिणा भी है। इस बीच 2004 में राजू सैनी भी रेल्वे में चयनित हो गया. इंदौर के पास देवास में स्टेशन मास्टर की नौकरी करते हुए भी उसने इस काम को रोका नहीं। वह अपनी नौकरी के बाद अब देवास से आकर घर नहीं जाता, उससे पहले वह नेहरु पार्क पंहुचता है और निशुल्क पढाने की मुहिम में जुटा है. अब हालात काफी बदल गए हैं. अब लोग खुद आगे बढ़कर अपने बच्चों को उससे पढाने के लिए कहते हैं, जबकि पहले बच्चे इक_े करने में ही पसीना आ जाता था. अब मोहल्ले की तस्वीर अलग ही हो गई है. कुछ सालों पहले तक जहाँ ये बस्तियां अपराध या गरीबी के लिए जानी जाती थी, वहां अब पांच सौ से ज्यादा सरकारी कर्मचारी रहते हैं. यहाँ की कई लडकियाँ भी अब अच्छे पदों पर काम कर रही हैं। इलाके की पुलिस भी मानती है कि अब यहाँ अपराधों में संलिप्तता धीरे-धीरे खत्म हो गई है।
राजू की आंखों में अब भी तैर रहे कई सपने
38 साल के राजू की आँखों में अब भी कई सपने तैरते नजर आते हैं. राजू ने बताया कि अब आसपास के जिलों से भी गरीब परिवारों से विद्यार्थी उनके पास पढने आते हैं। दरअसल सरकारी नौकरियों के लिए हमारे यहाँ किसी तरह का मार्गदर्शन ही नहीं दिया जाता, इसीलिए विद्यार्थी उनके अनुरूप नहीं ढल पाते। कई नौकरियां बिना किसी रिश्वत के सिर्फ थोड़ी सी मेहनत से मिल सकती हैं. हम वही प्रयास करते हैं. इन बच्चों में बहुत उर्जा है पर हमारा समाज इसका सही उपयोग नहीं कर पाता है। राजू से पढ़े और जिन्दगी में आगे बढ़े विद्यार्थी भी मानते हैं कि राजू सर का साथ नहीं मिला होता तो कहीं मजदूरी कर रहे होते या पुलिस रिकार्ड में दर्ज हो जाते. राजू सर की कोचिंग में आने वाले खाली हाथ नहीं रहते. हमारी जिन्दगी संवारने के लिए उन्होंने अब तक शादी भी नहीं की है।

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