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बहुत दिलचस्प होगा 2019 का मुकाबला

संसद के मानसून सत्र के दौरान हुई सियासत ने 2019 के लोकसभा चुनाव की तस्वीर लगभग साफ कर दी है। सत्र के दौरान सत्ता पक्ष व विपक्ष 2 बार आमने-सामने हुए हालांकि दोनों बार सत्ता पक्ष का फ्लोर मैनेजमैंट बेहतर रहा

बहुत दिलचस्प होगा 2019 का मुकाबला

संसद के मानसून सत्र के दौरान हुई सियासत ने 2019 के लोकसभा चुनाव की तस्वीर लगभग साफ कर दी है। सत्र के दौरान सत्ता पक्ष व विपक्ष 2 बार आमने-सामने हुए हालांकि दोनों बार सत्ता पक्ष का फ्लोर मैनेजमैंट बेहतर रहा और दोनों बार विपक्ष को हार का सामना करना पड़ा लेकिन गुरुवार को राज्यसभा के उपसभापति के पद हेतु चुनाव में तस्वीर ज्यादा साफ हुई है। इस चुनाव में हालांकि विपक्ष सिर्फ 105 वोट ही जुटा सका लेकिन इस बहाने कांग्रेस के साथ आने वाली पार्टियों को लेकर स्थिति स्पष्ट होती नजर आ रही है। राज्यसभा में हुए मुकाबले से लग रहा है कि 2019 का चुनाव दिलचस्प रहने वाला है।राज्यसभा में हुए चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, डी.एम.के., बी.एस.पी., सी.पी.एम., सी.पी.आई., राष्ट्रीय जनता दल, जे.डी.एस., केरल कांग्रेस व मुस्लिम लीग जैसी पार्टियां कांग्रेस के पक्ष में खड़ी हुईं, लिहाजा माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के साथ इनका गठबंधन तय हो सकता है।

इनके अलावा कुछ ऐसी पार्टियां भी हैं जिनके साथ कांग्रेस चुनाव के बाद गठबंधन कर सकती है। इनमें आम आदमी पार्टी, टी.आर.एस., पी.डी.पी. और नैशनल कॉन्फ्रैंस जैसी पार्टियां शामिल हो सकती हैं।भाजपा के सहयोगियों के टूटने को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा है। खासतौर पर शिवसेना के तल्ख तेवरों से महाराष्ट्र में दोनों का गठबंधन खतरे में नजर आ रहा है लेकिन शिवसेना ने जिस तरीके एन.डी.ए. के उम्मीदवार का समर्थन किया उससे लग रहा है कि शिवसेना ने गठबंधन को बरकरार रखने का एक रास्ता खुला रखा हुआ है। भाजपा के साथ-साथ शिवसेना को भी पता है कि यदि महाराष्ट्र में कांग्रेस और एन.सी.पी. मिलकर लड़ें तो भाजपा से अलग लडऩे की स्थिति में महाराष्ट्र में दोनों का नुक्सान होगा। लिहाजा आज का चुनाव शिवसेना के रुख में नर्मी का संकेत भी है। अकाली दल ने भी एन.डी.ए. के उम्मीदवार के पक्ष में वोट करके अपनी स्थिति साफ कर दी है। भाजपा को बीजद, ए.आई.ए.डी.एम. के और टी.आर.एस. का भी साथ मिला है। टी.आर.एस. के साथ को तेलंगाना में भाजपा के साथ तालमेल बढऩे की संभावना के तौर पर देखा जा रहा है। दक्षिण के इस राज्य में भाजपा का कोई आधार नहीं है। भाजपा को ए.आई.ए.डी.एम. के और टी.आर.एस. के रूप में दो मजबूत सहयोगी मिल सकते हैं।

संसद के इस सत्र के दौरान भाजपा 20 जुलाई को पहली बार सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव में बड़े अंतर से जीती और विपक्ष को बौना साबित किया  भाजपा 325 लोकसभा सदस्यों का भरोसा हासिल करने में कामयाब रही जबकि विपक्ष भाजपा के सामने 126 मतों के साथ बिखरा हुआ नजर आया। राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव के दौरान भी शुरूआती दौर में ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस भाजपा को पछाड़ देगी लेकिन ऐन मौके पर भाजपा ने इस चुनाव में अपना उम्मीदवार देने की बजाय एन.डी.ए. के हरिवंश नारायण सिंह को उतार कर बाजी पलट दी। इन दोनों शक्ति परीक्षणों में सफलता से भाजपा ने देश में यह धारणा बनाने में सफलता हासिल की है कि राजनीतिक प्रबंधन में उसका और विपक्ष का मुकाबला नहीं है और भाजपा काफी हद तक यह संदेश देने में कामयाब भी रही है।

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