नई दि्ल्ली : राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में महाराणा प्रताप की प्रतिमा का अनावरण करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, इतिहासकार अकबर द ग्रेट कहें, इस पर हमें कोई एतराज नहीं है लेकिन प्रताप द ग्रेट क्यों नहीं? मेवाड़ के इलाके में उनका पराक्रम और बलिदान भी उतना ही प्रभावशाली है। इसलिए उन्हें ज्यादा सम्मान और महत्व दिया जाना चाहिए।
जिसे बाद आज चारों ओर महाराणा प्रताप और अकबर को लेकर बातें शुरू हो गई। भारतीय इतिहास के इन दो राजाओं की महानताओं पर किसी को शक नहीं है और ना ही इनकी बराबरी की जा सकती है। दोनों का एक अलौकिक इतिहास है जो कि उनकी वीरता और हिम्मत की कहानी कहता है।
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1940 -
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1940 को राजस्थान के मेवाड़ में कुम्भलगढ़ में सिसोदिया राजवंश के महाराणा उदयसिंह और माता राणी जीवत कंवर के घर हुआ था। महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था, जो काफी तेज दौड़ता था। कहा जाता है कि अपने राजा की जान को बचाने के लिए वह 26 फीट लंबे नाले के ऊपर से कूद गया था। आज भी हल्दीघाटी में उसकी समाधी बनी है। 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में 20, 000 राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80, 000 की सेना का सामना किया था। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये थे लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाये।
कुल 11 शादियां -
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियां की थी उनके पत्नियों और उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम निम्नलिखित हैंं... महारानी अजब्धे पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास अमरबाई राठौर :- नत्था शहमति बाई हाडा :-पुरा अलमदेबाई चौहान:- जसवंत सिंह रत्नावती बाई परमार :-माल,गज,क्लिंगु लखाबाई :- रायभाना जसोबाई चौहान :-कल्याणदास चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह सोलनखिनीपुर बाई :- साशा और गोपाल फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा खीचर आशाबाई :- हत्थी और राम सिंह
हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था। अकबर और राणा के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था। हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीते और न ही राणा हारे। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी।
महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था।
अकबर ने जताया था दुख -
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले सिर्फ एक मुस्लिम सरदार थे और उनका नाम था हकीम खां सूरी। ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने युद्द के दौरान घास की रोटी से अपना और अपने परिवार का पेट भरा था। यही नहीं कुछ इतिहास कि किताबों में ये भी लिखा है कि राणा के निधन के बाद अकबर ने अपना शोक संदेश मेवाड़ भिजवाया था जिसमें उन्होंने दुख प्रकट किया था कि मुझे आजीवन इस बात का अफसोस रहेगा कि मैं कभी भी महाराणा को हरा नहीं पाया, वो वाकई में वीर योद्धा थे।
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