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समलैंगिकता अब अपराध नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने धारा-377 पर लगाई मोहर

सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि समलैंगिकता अब अपराध नहीं है. LGBTQ समुदाय के लिए ये एक बड़ी जीत है. लगभग 150 सालों से लागू ये कानून अब खत्म हो चुका है ी समलैंगिक सेक्स अपराध है या नहीं इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई जुलाई में की गई थी.

समलैंगिकता अब अपराध नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने धारा-377 पर लगाई मोहर

सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि समलैंगिकता अब अपराध नहीं है. LGBTQ समुदाय के लिए ये एक बड़ी जीत है. लगभग 150 सालों से लागू ये कानून अब खत्म हो चुका है I

समलैंगिक सेक्स अपराध है या नहीं इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई जुलाई में की गई थी. 10-17 जुलाई के बीच 4 दिन चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस खानविल्कर और जस्टिस इंदु मल्होत्रा हैं. इन सभी ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है I

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने आज आईपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखते हुए कहा कि हमें एक व्यक्ति की पंसद का सम्मान करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि दो बालिगों का सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाना जायज है इसलिए समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने धारा 377 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं का संयुक्त रूप से निपटारा करते हुए कहा कि एलजीबीटी समुदाय को हर वह अधिकार प्राप्त है, जो देश के किसी आम नागरिक को मिला हुआ है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने अलग-अलग परंतु सहमति का फैसला सुनाया। 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देशभर के एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों में खुशी की लहर है I

सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा- “यौन प्राथमिकता बायोलॉजिकल और प्राकृतिक है. इसमें किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन होगा. निजता किसी की भी व्यक्तिगत पसंद होती है. दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने यौन संबंध पर IPC की धारा 377 संविधान के समानता के अधिकार, यानी अनुच्छेद 14 का हनन करती है I

पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने इसे ‘उत्साहजनक’ फैसला बताया जबकि अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि इस फैसले से राजनीति की दशा और मानवीय मूल्यों में बदलाव आएगा। 

वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि इस फैसले ने लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर (एलजीबीटीक्यू) समुदाय के लिए पूरी समानता के दरवाजे खोल दिए हैं।      

सोराबजी ने कहा कि यह एक उत्साहजनक फैसला है और यदि किसी व्यक्ति के यौन रूझान विशिष्ट हैं तो यह कोई अपराध नहीं है। 

सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिकता को अपराध की कैटगरी से हटाने के लिए याचिका डालने वालों में होटल ललित के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर केशव सूरी भी थे. कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली के होटल ललित में जश्न का माहौल है.

फिल्म डायरेक्टर-प्रोड्यूसर करण जौहर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पर खुशी जाहिर की है. जौहर ने ट्वीट किया, "ऐतिहासिक फैसला... बहुत गर्व महसूस कर रहा हूं... समलैंगिकता को अपराध नहीं मानना और धारा 377 को खत्म करना मानवता तथा समान अधिकारों के लिए बड़ी उपलब्धि... देश को ऑक्सीजन वापस मिल गई है"

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने फैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिकता के प्रति सभी को अपना नजरिया बदलना होगा. उन्होंने कहा कि सबको समान रूप से देखना होगा I

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