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जानें, क्या है अब तक का अयोध्या विवाद का पूरा मामला ?

जानें, क्या है अब तक का अयोध्या विवाद का पूरा मामला ?

जानें, क्या है अब तक का अयोध्या विवाद का पूरा मामला ?

आखिर क्या है राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद?
ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1528 में अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया, जिसे हिंदू भगवान श्रीराम का जन्म स्थान मानते हैं। ये कहा जाता है कि ये मस्जिद मुगल बादशाह बाबर ने बनवाई थी, जिसकी वजह से इसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था। जिस जगह पर ये मस्जिद बनाई गई वहां भगवान राम का मंदिर था और उसे तोड़कर ही बाबर ने यहां पर मस्जिद बनवाई थी, लेकिन मुख्य रूप से इस विवाद की शुरुआत 1949 से हुई, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि यहां पर किसी ने मूर्तियां रखी हैं।

मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उस समय के यूपी के सीएम जी. बी. पंत से इस मामले में फौरन कार्रवाई करने को कहा। सरकार ने मस्जिद से मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट के. के. नायर ने धार्मिक भावनाओं के आह्त होने और दंगे भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। इसके बाद सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित करते हुए यहां ताला लगा दिया।

16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद नामक शख्स ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने अर्जी दाखिल कर यहां पूजा की इजाजत मांगी। सिविल जज एन. एन. चंदा ने इसकी इजाजत दे दी, इसके खिलाफ मुसलमानों की ओर से अर्जी दायर की गई। 

5 दिसंबर 1950 महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ढांचा नाम दिया गया।

17 दिसंबर 1959 को निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल को हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया। 18 दिसंबर 1861 को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित भूमि के मालिकाना हक को लेकर मुकदमा दायर किया।

यू. सी. पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज के. एम. पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन हुआ।
 
06 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया गया। इस घटना के बाद देश भर में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़क गए, जिनमें करीब 2,000 लोग मारे गए।

16 दिसंबर 1992 को मामले की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ । जुलाई 2009 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी।
साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने को कहा, जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को देने की बात कही गई।

9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। दिसंबर 2017 को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने स्पष्ट किया कि वह आठ फरवरी से विवादित भूमि की याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई करेगी।
 

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