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ड्राईविंग प्रशिक्षण : महिलाओं को मिली नई संभावनाएं

महिलाओं के रोजगार के अवसर केवल सिलाई-कढ़ाई जैसे परंपरागत रोजगारों तक सीमित न रहें, इसे ध्यान में रखते हुए दिल्ली स्थित आन्नद फाउंडेशन ने दिल्ली में आर्थिक कठिनाइयां झेल रहे परिवारों की महिलाओं के लिए ड्राईविंग प्रशिक्षण आरंभ किया है। इस प्रशिक्षण में ड्राईविंग के साथ महिलाओं के कानूनी अधिका

ड्राईविंग प्रशिक्षण : महिलाओं को मिली नई संभावनाएं

महिलाओं के रोजगार के अवसर केवल सिलाई-कढ़ाई जैसे परंपरागत रोजगारों तक सीमित न रहें, इसे ध्यान में रखते हुए दिल्ली स्थित आन्नद फाउंडेशन ने दिल्ली में आर्थिक कठिनाइयां झेल रहे परिवारों की महिलाओं के लिए ड्राईविंग प्रशिक्षण आरंभ किया है। इस प्रशिक्षण में ड्राईविंग के साथ महिलाओं के कानूनी अधिकारों, आत्म-रक्षा के उपायों जैसे विषयों पर भी बहुपक्षीय प्रशिक्षण किया जाता है।
इस प्रशिक्षण को प्राप्त कर रही कई महिलाओं से बातचीत करने पर जाहिर हुआ कि इस प्रशिक्षण से उन्हें एक नया आत्मविश्वास मिला है व कई कठिनाईयों के बावजूद वे भविष्य के प्रति अधिक आशावान हुई हैं।
पूनम को शुरू से मोटरकार ने आकर्षित किया था, और वह प्राय: सोचा करती थी कि यह कार आखिर चलती कैसे है? उस समय पूनम ने यह तो कतई नहीं सोचा होगा कि एक दिन वह स्वयं स्टीयरिंग व्हील संभालेगी और फर्राटे से गाड़ी चलाएगी।
पर हकीकत में यही हुआ। अब रोज सुबह मुस्तैदी से अपनी यूनिफार्म पहन कर अपनी ड्राईवर की भूमिका निभाने के लिए पूनम हाजिर होती हैं। आज भी वह उस दिन की उमंग नहीं भूल पाई है जब उसने पहली बार गाड़ी संभाली थी, चलाई थी।
पर यह उमंग, यह मुस्कान पूनम के लिए नई है। 26 वर्षीय पूनम ने कम उम्र में ही बहुत कठिनाईयां झेली हैं। उसके पति सफेदी का काम करते हैं। कभी काम मिलता है तो कभी नहीं भी मिलता है। पूनम के दो छोटे बच्चे हैं- 7 वर्षीय मनीषा व 5 वर्षीय शीतल। तरह-तरह की आर्थिक कठिनाई और अन्य समस्याओं के बीच अपने बच्चों को कैसे बेहतर भविष्य दे सकूं, यह चिंता पूनम करती रहती थी। पहले उसने आंगनवाड़ी का कार्य भी किया, कुछ सिलाई सीखी, पर यह पर्याप्त नहीं था। अंत में जब सिलाई के एक प्रशिक्षण के दौरान ड्राईवर के प्रशिक्षण, रोजगार की संभावना व आजाद फाउंडेशन के बारे में सुना तो पूनम ने न आव देखा न ताव, बस इस प्रशिक्षण का फार्म भर डाला। प्रशिक्षण के दौरान कोई आय तो थी नहीं पर पूनम को अपनी बड़ी बहन सीमा से बहुत सहायता मिली। सीमा और पूनम का विवाह एक ही परिवार में हुआ है। सीमा ने पूनम के दोनों बच्चों की जिम्मेदारी संभाल ली, तो पूनम को बड़ा सहारा मिल गया।
प्रशिक्षण के दौरान पूनम को नया आत्म-विश्वास मिलने लगा। फिर प्रशिक्षण पूरा होने पर एक अच्छी जगह नौकरी भी मिल गई। इंडिया टीवी की अधिकारी सुदीप्ता बनर्जी के यहां ड्राईवर की जिम्मेदारी संभालना पूनम के लिए एक बहुत अच्छी शुरूआत रही क्योंकि वे पूनम का बहुत ध्यान रखती हैं।
जब पूनम को पहली बार 5000 रुपए का वेतन मिला तो उसे बहुत अच्छा लगा कि अपने संयुक्त परिवार का खर्च चलाने में अब उसका भी महत्वपूर्ण योगदान हो गया है। हालांकि उसके जीवन में कई कठिनाईयां अभी चल ही रही हैं, पर इन समस्याआें के बीच पूनम अब मुस्करा भी लेती हैं। एक आत्म-विश्वास जो पहले नहीं था, वह अब उसके पास है। मदनपुर खादर के अपने निवास में पहले घूंघट में रहने वाली पूनम अब यूनिफार्म पहन कर मुस्तैदी से गाड़ी चलाती है, तो वह एक दूसरी ही पूनम लगती है।
20 वर्षीय सोनिया संगम विहार में रहती हैं वे मूलत: जयपुर के पास के गांव से उसका परिवार जुड़ा है। उसके पति कुछ समय पहले तक मैट्रो में कार्यरत थे। सोनिया सिलाई सीख रही थी तभी उसे  आजाद फाऊंडेशन के ड्राईविंग प्रशिक्षण के बारे में पता चला।
उस समय को याद कर सोनिया बताती हैं, मुझे तो जैसे पंख लग गए। मैं बार-बार सोचने लगी कि क्या मैं भी ड्राईविंग सीख सकूंगी।
प्रशिक्षण के दौरान नानकपुर में जो आत्म-रक्षा का प्रशिक्षण मिला, उससे सोनिया की हिम्मत बढ़ गई है। उसके अतिरिक्त सोनिया को आपसी बातचीत का प्रशिक्षण भी उपयोगी लगा। अनावश्यक विस्तार से बचने व अपनी बात संक्षेप में रख पाना उसने सीखा। महिला अधिकार संबंधी प्रशिक्षण का सोनिया पर गहरा असर हुआ। एक महिला के रूप में अपने अधिकारों के प्रति वह अधिक सचेत हुई और इसका असर सोनिया के अपने जीवन में भी नजर आया।
यहां आने से पहले सोनिया को लगता था कि कक्षा 8 से ही उसकी पढ़ाई समाप्त हो चुकी है। पर अब उसने यहां से प्रोत्साहन प्राप्त कर आगे पढ़ने का मन बनाया है। एक ब्रिज कोर्स का लाभ उठाकर सोनिया को उम्मीद है कि निकट भविष्य में वह कक्षा 10 की परीक्षा पास कर सकेगी। सोनिया को लगता है कि अब उसके सामने एक नया अध्याय खुल गया है और उसे अभी बहुत आगे बढ़ना है। अब उसकी दुनिया पहले जैसी सिमटी-सिमटी नहीं रही है व बहुत बड़ी हो गई है।
सोनिया अन्य महिलाओं को भी यह संदेश देना चाहती है कि जहां नए अच्छे अवसर उपलब्ध हो रहे हैं तो उन्हें भी चारदीवारी से बाहर निकलकर इन अवसरों का उपयोग अवश्य करने चाहिए।
पुरानी कोंडली यमुना पार क्षेत्र में रहने वाली ओंकारी की आयु 32 वर्ष है। ओंकारी की 3 बेटियां क्रमश: 12 वर्ष, 9 वर्ष व 5 वर्ष की आयु की हैं व बेटा 3 वर्ष का है। यह ओंकारी के लिए एक बड़ी चुनौती है कि बच्चों की देखरेख और घर-गृहस्थी की तमाम जिम्मेदारियों के बीच उसने एक नए रोजगार व यह भी ड्राईविंग सीखने का बीड़ा उठाया। लगभग 7 महीने का प्रशिक्षण पूरा भी कर दिया है।
पिछले सात महीनों से सुबह 4.30 बजे से लेकर रात के लगभग 11.30 बजे तक ओंकारी का जीवन बेहद व्यस्तता भरा हो गया है क्योंकि उसे घर-गृहस्थी, बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारियों के साथ अपना प्रशिक्षण भी पूरा करना है। कभी-कभी तो ओंकारी इतनी थक जाती थी कि उसे लगता था कि अब मैं शायद प्रशिक्षण जारी न रख पाऊं। फिर भी हिम्मत जुटा कर उसने प्रशिक्षण जारी रखा।
अब स्थिति और विकट हो गई है क्योंकि प्रशिक्षण कुछ लंबा खिंच रहा है। पहले भी परिवार व आस-पड़ौस की कुछ आलोचना ड्राईविंग का प्रशिक्षण शुरू करने से पहले ओंकारी सुनती रही थी। पर उसने किसी तरह अपने पति को मना लिया था। पर अब परिवार व आस-पड़ौस में आलोचना बढ़ रही है।
इसके बावजूद ओंकारी अपना प्रशिक्षण अनेक कठिनाईयों के बावजूद जारी रख पाई है तो इसकी एक बड़ी वजह यह है कि तरह-तरह के प्रशिक्षण उसे बहुत उपयोगी लगे हैं। आत्म रक्षा का प्रशिक्षण हो या बातचीत व संवाद का या महिला अधिकारों संबंधी जानकारी, ओंकारी का मानना है कि यह सब उसके लिए बहुत उपयोगी रहे।
आगे एक अच्छे रोजगार की उम्मीद का एक बड़ा आधार ओंकारी के जीवन के साथ जुड़ गया है। वह अब चाहती है कि और अधिक इंतजार न करना पड़े। शीघ्र ही प्रशिक्षण पूरा हो व उसकी मेहनत का फल अच्छे रोजगार के रूप में उसे मिले।
अनीतादास बिहार के कटिहार क्षेत्र की रहने वाली हैं व दिल्ली के तुगलकाबाद क्षेत्र में उसकी मां उसके तीन भाईयों के साथ रहती हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए तेरह वर्ष पहले अनीता ने ग्रेटर कैलाश के परिवार में घरेलू कर्मी के रूप में कार्य आरंभ किया। वह इस परिवार के साथ ही रहती है। आठवीं कक्षा के बाद स्कूली शिक्षा भी छूट चुकी है। लगभग 1 वर्ष पहले अनिता ने फोन पर किसी को बात करते सुना कि ड्राईविंग करने का प्रशिक्षण आजाद फाऊंडेशन में उपलब्ध है, तो उसने इस बारे में आगे पूरी जानकारी आरंभ की। जिस परिवार में वह कार्यरत थी उन्हें मनाया कि साथ में वह यह प्रशिक्षण भी कर सके। इसके लिए उसे बड़ी मेहनत करनी पड़ी क्योंकि दोनों कार्य एक साथ निभाना बहुत कठिन था।
प्रशिक्षण में ऐसा बहुत कुछ था जिससे बहुत खुशी भी मिली, मजा भी आया व ज्ञान तो बहुत बढ़ा। अनीता कहती हैं कि प्रशिक्षण ने उसके व्यक्तित्व को बदल दिया। चाहे आत्म-रक्षा का प्रशिक्षण हो या महिला अधिकारों का, उसे यह बहुत अच्छा लगा।
अब जल्दी ही अनीता को प्रशिक्षण पूरा करने  पर नया रोजगार ड्राइवर के रूप में मिलेगा। पर साथ ही उसे इस बात का पूरा ख्याल है कि जिनके साथ 13 वर्ष कार्य किया है उन्हें कोई कठिनाई न हो। अनीता ने बताया कि वह पहले उनके लिए कोई अन्य घरेलू कर्मी ढूंढ कर देगी, तभी उनका कार्य छोड़ेगी।
आगे के जीवन के बारे में अनीता का इरादा है कि पहले कामर्शियल लाईसेंस प्राप्त करेगी व इसके बाद हैवी व्हीकल लाइसेंस भी प्राप्त करेगी। दरअसल अनीता को बस चलाने का बहुत शौक है व उसे उम्मीद है कि वह एक दिन डीटीसी बस चला पाएगी।
अनेक कठिनाईयों और बड़ी मेहनत के बीच अनीता दास की अपनी मधुर मुस्कान बनी रही है व आजाद फाऊंडेशन को धन्यवाद देते हुए वह भविष्य की नई चुनौतियों के लिए तैयार है।

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