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कमाल की परियोजना: गोबर के बदले दिया जा रहा LPG गैस सिलेंडर, जाने कहाँ और क्यों?

अगर आपसे हम कहें की गोबर के बदले में LPG गैस सिलेंडर दिया जा रहा है तो आप शायद ही हमारी बात पर यकीन करेंगे। मगर ये सच है। इस परियोजना को बिहार में एक जगह छोटे स्तर पर शुरू किया गया है।

कमाल की परियोजना:  गोबर के बदले दिया जा रहा LPG गैस  सिलेंडर, जाने कहाँ और क्यों?

कमाल की परियोजना: गोबर के बदले दिया जा रहा LPG गैस सिलेंडर, जाने कहाँ और क्यों ? 

बिहार: अगर आपसे हम कहें की गोबर के बदले में LPG गैस सिलेंडर दिया जा रहा है तो आप शायद ही हमारी बात पर यकीन करेंगे। मगर ये सच है। इस परियोजना को बिहार में एक जगह छोटे स्तर पर शुरू किया गया है, जहां लोग गाय-भैंस के गोबर के बदले गैस सिलेंडर ले सकते हैं। इस नयी परियोजना शुरुआत डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में हुई है।

आइये जानते हैं,क्या है ये परियोजना-

गोबर के बदले गैस सिलेंडर देने की परियोजना को एक प्रयोग के तौर शुरू किया गया है। टीवी9 की रिपोर्ट के अनुसार इस योजना को फिलहाल बिहार के मधुबनी जिले के एक गांव से शुरू किया गया है। बता दें कि यदि लोगों की तरफ से अच्छा रेस्पोंस रहा तो इस योजना को वहां बाकी गांवों में भी शुरू किये जाने की संभावना है।

इस परियोजना के लाभ-

इस परियोजना से एक तरफ जहां ग्रामीणों को गैस सिलेंडर मिलेंगे, वहीं दूसरी ओर किसानों के साथ-साथ अन्य लोगों को रोजगार के नये मौके मिलेंगे। इसके अलावा गांवों की स्थिति में सुधार होगा। इस परियोजना को एक वरिष्ठ भूमि वैज्ञानिक संभाल रहे हैं। आपको बता दें कि इन ग्रामीण इलाकों में लोगों को गैस सिलेंडर तो मिल गए, मगर वे उनमें गैस नहीं भरवा पा रहे हैं।

यहाँ रहने वाले परिवारों के पुरुष काम के चक्कर में दूसरे शहर चले जाते हैं और महिलाओं पर घर की जिम्मेदारी आ जाती है। फिर वे पैसों की तंगी के चलते सिलेंडर में गैस भरवाने के बजाय चूल्हे पर खाना बनातीं हैं। उज्ज्वला योजना के माध्यम से ग्रामीणों को गैस सिलेंडर मिल गए थे, मगर यहां के लोग उसे दोबारा नहीं भरवा पा रहे। इसलिए यूनिवर्सिटी ने एक नयी परियोजना की शुरुआत की है।

यूनिवर्सिटी इस गोबर का करेगी क्या?

सबसे बड़ा सवाल ये है कि यूनिवर्सिटी भला इस गोबर का क्या करेगी। तो आपको बता दें कि गोबर और कचरे से मिला कर यहां खाद तैयार होगी। साथ ही आगे का प्लान गोबर से 500 टन वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने का है। ये किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है। फिलहाल यहां 250 टन क्षमता का काम शुरू हो चुका है। बता दें कि गोबर की खाद फसल के लिए भी अच्छी मानी जाती है। यानी एक तरफ खाद तैयार होगी और दूसरी तरफ पशुपालन को बढ़ावा मिलेगा।

किसानों को होगा लाखों का फायदा-

जो किसान इस योजना का फायदा लेने के लिए गोबर का इंतजाम करेंगे वे उनका दूध बेच कर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। उनके परिवारों को एक तरह से मुफ्त सिलेंडर मिलेगा। जिस गांव में ये योजना शुरू हुई है, वहां कुल 104 परिवार हैं। गांव की कुल 56 फैमिली इस परियोजना में शामिल हुई हैं। आपको बता दें कि यूनिवर्सिटी का प्लान कुछ सालों बाद इस योजना को पूरी तरह से गांव वालों को सौंपने का है।

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