इस बार 8 अक्टूबर को करवा-चौथ है, जिसके लिए महिलाएं अभी से ही तैयारियों में जुट गई हैं। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाये जाने वाले व्रत में सुहागिन महिलायें अपने पति के जीवन के रक्षार्थ, दीर्घायु एवं सुखी जीवन की कामना करते हुये संध्या के समय में चन्द्रोदय के पूर्व पूर्ण विधिविधान के साथ भगवान श्री गणेश एवं गौरी, शिव पार्वती तथा चौथ की मुख्य देवी अम्बिका का पूजन किया जाता है। इस दौरान करवे की पूजा भी की जाती है और इसलिए इस व्रत को करवा-चौथ कहा जाता है।
आइये जानते है क्यों होती है करवे की पूजा?
मिट्टी का बना करवा पंचतत्व का प्रतीक होता है क्योंकि ये मिट्टी और पानी से मिलकर बना है और इसे बनाने के बाद इसे धूप और वायु में सुखाया जाता है और फिर आग में पकाया जाता है। भारतीय संस्कृति में पानी को ही परब्रह्म माना गया है, क्योंकि जल ही सब जीवों की उत्पत्ति का केंद्र है। मिट्टी के करवे को पूजन के बाद इसमें रखे पानी को पति अपने हाथ से पत्नी को पिलाता है। वैसे कुछ क्षेत्रों में तांबे,पीतल एवं चांदी के घट का प्रयोग भी किया जाता हैं।
इस दिन शिव-गौरी की होती है पूजा-
पौराणिक कथाओं मे भगवान शिव एवं पार्वती को एक आदर्श युगल माना गया है। चन्द्रमा भगवान शिव के मस्तक पर शोभित होता है इसी कारण उसे अर्ध्य देने का विधान है। दिन भर व्रत के साथ पूजन सम्पन्न करने के पश्चात महिलाएं चांद का पूजन करके उसे करवा से अर्ध्य देते हुये उसे चलनी से निहारने के साथ पति को देखती है।
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