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मकर संक्रांति - जानें कुछ ख़ास बातें और महत्व

मकर संक्रांति - जानें कुछ ख़ास बातें और महत्व

मकर संक्रांति - जानें कुछ ख़ास बातें और महत्व

मकर राशि में सूर्य की संक्रान्ति को ही मकर संक्रान्ति कहते है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास समाप्त होता है और नव वर्ष पर अच्छे दिनों की शुरूआत होती है। सूर्य की पूर्व से दक्षिण की ओर चलने वाली किरणें बहुत अच्छी नहीं मानी जाती है किन्तु पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने पर सूर्य की किरणें अधिक लाभप्रद होती है। शायद इसलिए मकर संक्रान्ति के शुभ अवसर पर सूर्यदेव की आराधना करने का विधान बनाया गया है।

सूर्य आत्मा का कारक है और आत्मा में परमात्मा यानि परमऊर्जा का निवास होता है। जब तक हम आत्म-विश्वास से भरे नहीं होंगे तब तक आकांक्षाओं की पूर्ति असम्भव सी प्रतीत होगी। सूर्य की उपासना से अध्यात्मिक ऊर्जा का संचरण होता है। सकारात्मक ऊर्जा से मन व तन में विशुद्धता आती है। तन व मन के शुद्ध होने पर आत्मबल में वृद्धि होती है और आत्मबल से मनोकामनाओं की पूर्ति के मार्ग प्रशस्त होते है।

ज्योतिष शास्त्र की माने तो कर्क राशि से लेकर धनु राशि तक सूर्य दक्षिणायन में भ्रमण करता है अर्थात सूर्य कर्क रेखा के दक्षिणी हिस्से में रहता है एंव मकर से लेकर मिथुन तक सूर्य कर्क रेखा के उत्तरी भाग में गोचर करता है। सूर्य के दक्षिणायन में रहने पर दिन छोटे एंव रातें बड़ी होने लगती है और सूर्य के उत्तरायण में गोचर करने पर दिन बड़े होने लगते और राते छोटी। मकर संक्रांति की तिथि को दिन एंव रात दोनों बराबर होते है। धर्मग्रन्थों के मुताबिक सूर्य के दक्षिणायन होने पर 6 माह देवताओं की रात्रि होती है एंव सूर्य के उत्तरायण होने पर 6 माह देवताओं के दिन माने गयें है।

सूर्य का बृहस्पति से नवम दृष्टि सम्बन्ध व बृहस्पति का सूर्य से पंचम दृष्टि सम्बन्ध 12 वर्षो बाद बन रहा है। इस योग में सूर्य की आराधना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस बार माघ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि पर शनिवार के दिन 14 जनवरी को प्रातः 7 बजकर 40 मिनट पर अश्लेषा नक्षत्र प्रीति योग एंव कर्क राशि में चन्द्रमा रहेगा। उस समय सूर्यदेव मकर राशि में प्रवेश करेंगे। उदयकाल में सूर्य संक्रान्ति का शास्त्रों में विशेष महत्व माना जाता है।

विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख अनुसार मकर संक्रांति के दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग करने पर जातक के जीवन में सुख व समृद्धि प्राप्त होती है।
- तिल के तेल से स्नान करना।
- तिल का उबटन लगाना।
- पितरों को तिलयुक्त तेल का अर्पण करना।
- तिल की आहूति देना।
- तिल का दान करना।
- तिल का सेंवन करना।
- हालांकि व्यवहारिक दृष्टिकोण से यदि देखा जाये तो तिल की एक आयुर्वेदिक औषधि है जो कि काफी गर्म होता है।
- सर्दी के मौसम में तिल के सेंवन से शरीर गर्म रहता है और आप जिससे कड़ाके की ठण्ड से बच सकते है।

मकर संक्रांति पर खिचड़ी ही क्यों खाते है?
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति के दिन भोजन के रूप में खिचड़ी खाने की परम्परा प्रचलित है। उत्तर प्रदेश में चावल की पैदावार अधिक होती थी। मकर संक्रांति को नयें वर्ष के रूप में मनाया जाता है। इसलिए नयें वर्ष में नया चावल खाना ज्यादा अच्छा माना गया है। इसलिए इस विशेष दिन खिचड़ी खाने की परम्परा विकसित हुई।

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