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आखिर कैसे कोई अपराधी सुरक्षित रहते है एक देश से दूसरे देश में भागकर

आखिर कैसे कोई अपराधी सुरक्षित रहते है एक देश से दूसरे देश में भागकर

आखिर कैसे कोई अपराधी सुरक्षित रहते है एक देश से दूसरे देश में भागकर

जब भारत में करोड़ों का घोटाला करके विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी जैसे लुटेरे  देश छोड़कर  विदेश भाग जाते है तो ऐसे में इन जैसों के खिलाफ अदालती कार्रवाई के लिए उनको भारत लाना बहुत ही मुश्किल काम होता है। आज हम आपको बताने जा रहे है कि कैसे कोई मुख्य आरोपी कानून का उलंघन कर कानून के सहारे ही दूसरे देशो में जाकर आनंद उठाता है। पीएनबी (पंजाब नेशनल बैंक), एस बी आई (स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया) और आईपीएल में करोड़ों रुपयों के घोटाले के आरोपी अब भारत छोड़कर विदेश जा चुके है। इन सभी मामलों की जांच कर रही सीबीआई के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है कि देश छोड़कर भागे हुए आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए उन्हें भारत लाना बहुत मुश्किल काम है। विजय माल्या, जिन्हें कई कोशिशों के बाद भी अभी तक ब्रिटेन से भारत नहीं लाया जा सका है। इसी क्रम में एक के बाद एक ललित मोदी और नीरव मोदी भी करोड़ों का घोटाला करके विदेश भाग चुके है।

भारत की 47 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि

भारत में विदेश भागे आरोपियों को प्रत्यर्पित करने का दूसरा सबसे बड़ा कारण होता है आर्थिक अपराध। विजय माल्या, ललित मोदी और नीरव मोदी जैसों का अपराध भी इसी श्रेणी में आता है। भारत की 47 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है। साथ ही 9 अन्य देशों के साथ प्रत्यर्पण व्यवस्था पर सहमति है। प्रत्यर्पण कानून, 1962 के तहत अगर कोई व्यक्ति भारत में अपराध करके विदेश भाग जाता है तो भारत उसके प्रत्यर्पण की गुजारिश कर सकता है। साथ ही दूसरे देशों में अपराध को अंजाम देकर भारत आने वाले अपराधियों को भारत संबंधित देश को सौंप देता है। लेकिन प्रत्यर्पण के लिए कई तरह की शर्तें भी हैं। जिस काम के लिए आरोपी को प्रत्यर्पित किया जाना है, वह दोनों देशों में दंडनीय अपराध की श्रेणी में आना चाहिए। साथ ही उस अपराध के लिए कम से कम एक साल तक की सजा का प्रावधान भी होना चाहिए। जैसे, समलैंगिकता किसी देश में अपराध हो सकता है और किसी देश में नहीं। ऐसे में समलैंगिकता के आरोपी को उस देश से प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता, जहां इसे अपराध नहीं माना जाता है।

क्या है प्रत्यर्पण संधि

विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार , प्रत्यर्पण संधि के तहत कोई भी देश किसी आरोपी को दूसरे देश को सौंपता है। यह तभी मुमकिन होता है, जब आरोपी का अपराध साबित हो जाए और कोर्ट उसे दोषी करार दे दे। एक भगौड़ा अपराधी के मामले में ही किसी देश के साथ प्रत्यर्पण के लिए प्रक्रिया शुरू करने का औपचारिक आवेदन किया जा सकता है। इसमें इसका ध्यान रखना होगा कि अपराधी का अपराध उक्त देश के साथ हुए प्रत्यर्पण संधि के दायरे में आता हो।

क्या है जटिलता

पहला-प्रत्यर्पण कानून के प्रावधान उन्हीं स्थितियों में लागू होते हैं, जब आरोपी का अपराध दोनों देशों में अपराध माना जाता हो। दूसरा- आर्थिक धोखाधड़ी के मामले में आरोपी को विदेश से भारत लाया जा सकता है, लेकिन उसके लिए भारत को अदालती प्रक्रिया का सामना करना होगा। मगर यह इतना आसान भी नहीं है। क्योंकि दूसरे देशों के साथ हुई भारत की प्रत्यर्पण संधि में दशकों से कोई बदलाव या संशोधन नहीं किया गया है।

कई देश इस आधार पर भी प्रत्यर्पण का निवेदन खारिज कर देते हैं कि आरोपी को होने वाली संभावित सजा, उस देश में चलन में नहीं होती। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मैक्सिको और ज्यादातर यूरोपीय देश उन आरोपियों को प्रत्यर्पित करने से इनकार कर देते हैं, जिन्हें दूसरे देश में उम्र कैद मिलने की संभावना होती है। इसी तरह फ्रांस, जर्मनी, रूस, ऑस्ट्रिया, चीन, ताइवान और जापान अपने नागरिकों को प्रत्यर्पित करने से इनकार कर देते हैं।

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