भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी ने माँगा उपमुख्यमंत्री का पद, नहीं तो अलग से लड़ेंगे-
2022 में उत्तर प्रदेश के अंदर विधानसभा चुनाव होने है। चुनाव की दस्तक के साथ ही प्रदेश में सियासी सरगर्मी तेज हो गई हैं। इस बीच भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने एक बड़ी मांग कर दी है। दरअसल, निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने मांग की है कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। जिसके बाद भाजपा और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की टेंशन बढ़ गई है।
कौन हैं डॉक्टर संजय निषाद-
संजय निषाद को 6 साल पहले तक निषाद समुदाय और इनके लिए काम करने वाले कुछ ही लोग जानते थे। हालांकि, संजय निषाद अचानक से उस वक्त लाइमलाइट में आए गए, जब उन्होंने योगी आदित्यनाथ की सीट पर बीजेपी को हराने के लिए काम किया। उन्होंने 2013 में निषाद पार्टी बनाई। उससे पहले वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में गीता वाटिका रोड पर इलेक्ट्रो होम्योपैथी क्लीनिक चलाते थे। बता दें कि संजय ने शुरुआत में इलेक्ट्रो होम्योपैथी को मान्यता दिलाने के लिए भी काम किया था। 2002 में उन्होंने पूर्वांचल मेडिकल इलेक्ट्रो होम्योपैथी असोसिएशन बनाया। वह अपनी मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट तक भी गए।
संजय निषाद ने 2008 में बनाए दो संगठन-
खबरों के मुताबिक, डॉक्टर संजय निषद सबसे पहले बामसेफ से जुड़े। इतना ही नहीं, संजय कैम्पियरगंज विधानसभा से पहली बार चुनाव भी लड़े और हार गए थे। यहां से उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई। 2008 में उन्होंने ऑल इंडिया बैकवर्ड ऐंड माइनॉरिटी वेलफेयर मिशन और शक्ति मुक्ति महासंग्राम नामक दो संगठन बनाए। उन्होंने राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद बनाई। मछुआ समुदाय की 553 जातियों को एक मंच पर लाने की मुहिम शुरू की।
इस घटना के बाद संजय निषाद फ्रंट लाइन पर आ गए-
संजय निषाद ने 7 जून 2015 को गोरखपुर के सहजनवा में कसरावल गांव के पास निषादों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को लेकर रेलवे ट्रैक जाम कर दिया। इस प्रदर्शन में पुलिस फायरिंग हुई और अखिलेश निषाद नाम के युवक की गोली लगने से मौत हो गई। इस घटना के बाद प्रदर्शन और उग्र हो गया था। जमकर बवाल और तोड़फोड़ हुई। अखिलेश सरकार संजय निषाद सहित तीन दर्जन लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ। इस घटना के बाद से संजय निषाद फ्रंट लाइन पर आ गए।
2017 में बनाई निषाद पार्टी (Nishad Party)-
लोगो के बीच पॉप्युलर होने के बाद संजय निषाद ने अपनी निषाद पार्टी बनाई और जुलाई 2016 को गोरखपुर में शक्ति प्रदर्शन किया। वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी के साथ गठबंधन किया और 72 सीटों पर चुनाव लड़ी। लेकिन पार्टी को सिर्फ ज्ञानपुर सीट पर ही जीत मिली। बता दें कि संजय निषाद खुद गोरखपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें सिर्फ 34,869 वोट मिले और वह हार गए। हाल ही में निषाद पार्टी ने एसपी के साथ गठबंधन किया और उपचुनाव में संजय के बेटे प्रवीण निषाद संत कबीर नगर संसदीय सीट जीत गए।
पूर्वांचल में कैसा है निषाद पार्टी का रसूख-
गंगा के किनारे वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके में निषाद समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है। वर्ष 2016 में गठित निषाद पार्टी का खासकर निषाद, केवट, मल्लाह, बेलदार और बिंद बिरादरियों में अच्छा असर माना जाता है। गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज, जौनपुर, संत कबीरनगर, भदोही और वाराणसी समेत 16 जिलों में निषाद समुदाय के वोट जीत-हार में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं। निषाद समुदाय का भारी वोटबैंक होने से पूर्वांचल में निषाद पार्टी का रसूख ठीक ठाक माना जाता है।
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