
कोलकाता/कालीगंज। पश्चिम बंगाल की कालीगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने बड़ी जीत दर्ज करते हुए भाजपा और वाम-कांग्रेस गठबंधन को पीछे छोड़ दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी की उम्मीदवार अलीफा अहमद ने बीजेपी के प्रत्याशी आशीष घोष को 51,334 वोटों के बड़े अंतर से हराया।
यह सीट TMC विधायक नसीरुद्दीन अहमद के निधन के चलते खाली हुई थी, जिसके बाद पार्टी ने उनकी 38 वर्षीय बेटी अलीफा को मैदान में उतारा। यह जीत न केवल सहानुभूति लहर का असर दिखाती है, बल्कि ममता बनर्जी की योजनाओं और जनाधार की भी पुष्टि करती है।
कम मतदान, लेकिन बड़ी जीत
कालीगंज सीट पर 19 जून को करीब 60.32% मतदान हुआ, जो 2021 की तुलना में कम रहा। इसके बावजूद टीएमसी को जबरदस्त समर्थन मिला। स्थानीय स्तर पर ममता सरकार की लोकप्रिय योजनाएं—जैसे ‘लक्ष्मी भंडार’, ‘स्वास्थ्य साथी’ और ग्रामीण विकास के वादे—अलीफा की जीत में निर्णायक साबित हुए। यह चुनाव परिणाम यह भी दर्शाता है कि अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में टीएमसी का प्रभाव बरकरार है।
बीजेपी को फिर झटका, 2026 से पहले बढ़ीं चुनौतियां
बीजेपी के लिए यह हार चिंताजनक है। 2024 के लोकसभा चुनाव में राज्य में प्रदर्शन कमजोर रहने के बाद पार्टी कालीगंज में वापसी की उम्मीद कर रही थी। हालांकि उम्मीदवार आशीष घोष ने भ्रष्टाचार और विकास की कमी जैसे मुद्दे उठाए, लेकिन वे मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर पाए। इस हार ने आगामी 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
वाम-कांग्रेस गठबंधन भी रहा हाशिए पर
कांग्रेस और माकपा के गठबंधन ने काबिल उद्दीन शेख को उम्मीदवार बनाकर एकजुटता दिखाई, लेकिन यह समीकरण भी टीएमसी की ताकत के सामने बेअसर साबित हुआ। लगातार विफल हो रहा यह गठबंधन संकेत देता है कि विपक्ष को ममता बनर्जी के सामने टिकने के लिए अब और संगठित और रणनीतिक ढंग से तैयारी करनी होगी।
2026 के लिए मनोवैज्ञानिक बढ़त
इस उपचुनाव के नतीजे ममता बनर्जी के लिए एक बार फिर मनोवैज्ञानिक बढ़त का काम करेंगे। टीएमसी पहले ही 2024 के उपचुनावों में छह में से छह सीटें जीत चुकी है और लोकसभा में 29 सीटें हासिल कर चुकी है। ऐसे में कालीगंज की जीत मुख्यमंत्री ममता के लिए 2026 से पहले एक मजबूत संकेत है कि उनका जनाधार अब भी स्थिर है।
हालांकि, कम मतदान, टूटी सड़कें और स्थानीय असंतोष जैसे मुद्दे भविष्य में चुनौतियां बन सकते हैं। लेकिन फिलहाल यह साफ है कि बंगाल में ममता का जादू अभी भी असरदार है और टीएमसी की पकड़ मजबूत बनी हुई है।
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