नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक पीठ आज निजता के अधिकार पर अपना फैसला सुना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने 9 सदस्यों वाली संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से इसे मौलिक अधिकार माना है। अदालत के इस फैसले के बाद आधार, पैन, क्रेडिट कार्ड को सार्वजनिक नहीं हो सकता। इस फैसले के बाद अब किसी के आधार की जानकारी लीक नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि निजता की सीमा तय करना संभव हैं।
बता दें कि जिस संवैधानिक पीठ ने आज फैसला सुनाया उसमें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जगदीश सिंह खेहर के साथ जस्टिस जे चेलामेश्वर,जस्टिस एस ए बोबड़े, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस रोहिंगटन फली नरीमन,जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा -
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार कोई कानून बनाती है तो उसमें पैन और आधार जैसी जानकारी को देना जरूरी नहीं किया जा सकेगा। गौरतलब है कि सरकार के लिए यह एक तरह से झटका है क्योंकि सरकार ने इससे पहले कोर्ट में ये दलील दी थी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है ।इसके साथ ही रेल और हवाई जैसी यात्राओं में आधार पैन कार्ड की जानकारी देना जरूरी नहीं किया जा सकता। इस दौरान सभई 9 न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से सुप्रीम कोर्ट के पहले 2 फैसलों का खंडन किया है कि गोपनीयता का अधिकार संविधान के अंतर्गत सुरक्षित नहीं है। बता दें कि साल 1954 और साल 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2 फैसलों में कहा था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है।
इसलिए अदालत पहुंचा मामला-
सुप्रीम कोर्ट ने आज 10.30 बजे फैसला सुनाया । बता दें कि राइट टू प्राइवेसी का मामला सुप्रीम कोर्ट इसलिए पहुंचा क्योंकि आधार कार्ड की वैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि बायोमैट्रिक जानकारी लेना निजता का हनन है। हालांकि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि निजता का अधिकार, मौलिक अधिकार नहीं है। अगर इसे मौलिक अधिकार मान लिया जाएगा तो व्यवस्था नहीं चल पाएगी। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट अपनी सुनवाई 2 अगस्त को पूरी कर चुका है।
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