
सन्डीला, हरदोई। विधायक जी जिन मुद्दों को लेकर धरना पर बैठे थे विधायक जी के पास लिखित मे लगभग बीस शिकायत कोतवाल की हैं जिसमे शिकायत कर्ता ने अपना नाम व मोबाइल नंबर भी लिखित में दे रखा हैं। जब विधायक जी ने कोतवाल से बात की और बताया आप द्वारा गरीब जनता को परेशान किया जा रहा है व 5000 से 24000 रुपये आप द्बारा गरीब जनता से वासूले गये हैं, तो कोतवाल अपने को फसता देखकर विधायक जी से कहा-"आप कितनी बार फोन करेगे और फोन काट दिया फिर विधायक जी ने काई बार फोन किया मगर कोतवाल ने फोन नहीं उठाया, तब मजबूरन में विधायक जी को धरना करना पडा। जब विधायक जी ने कोतवाली मे उन सभी लोगों से जिला अध्यक्ष महोदय के सामने बयान दिलाया की इन लोगों से कोतवाल ने धन ऊगाही की है तो उसका नतीजा यह हुआ कि उलटा विधायक जी पर आरोप लगाया गया कि विधायक एक जेब कतरे की मदद करते हैं।
आप लोगों को मालूम होगा कि विधायक जी का स्वभाव कितना सरल व जनप्रिय है। विधायक जी की सिधायी का फायदा उठकर पुलिस-प्रशासन ने कैसे पूरे प्रकरण को घुमा-फिरा कर पेस किया।विधायक जी ने जनता के पक्ष में धरना दिया। जो की उनकी प्राथमिकता थी। उन्होने कोई गलत निर्णय नहीं लिया। कोतवाल पर जनता द्वारा निर्दोष लोगों से धन उगाही का आरोप है और इसीलिये विधायक जी ने जनता के साथ कोतवाली मे धरना दिया । लेकिन पुलिस प्रशासन द्वारा झासा देकर विधायक जी का अनशन तुड़वाना शर्मनाक घटना है। विधायक जी ने किसी आरोपी का पक्ष नहीं लिया और ना ही उनके लिये कोतवाल से कोई सिफारिश की वो तो सिर्फ और सिर्फ निर्दोषों के पक्ष में धरने पर बैठे थे जो की उनका कर्तव्य था।
जहाँ तक मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है की लोकतंत्र का अर्थ- "लोकतंत्र जनता का, जनता के लिये, जनता द्वारा शासन है।" जिसमें सत्ता का अन्तिम सूत्र जनता के ही हाथों में होता है, यदि उसी जनता के लिये कोई जनप्रतिनिधि अनशन पर बैठता है तो यह सरहनीय है।
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