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कैश की तरफ वापस लौटा, MP का पहला कैशलेस गांव

MP के बड़झिरी गांव को नोटबंदी के बाद राज्य का पहला डिजिटल गांव होने का दर्जा मिला था, लेकिन महज 2 साल बाद यहां हालात बदल चुके है। कैशलेस गांव से बड़झिड़ी अब वापस कैश की तरफ लौट आया है। गांव में अब लोग नोट देकर ही अपने काम निपटा रहे हैं और POS मशीनें धूल खा रही हैं।

कैश की तरफ वापस लौटा, MP का पहला कैशलेस गांव

भोपाल। MP के बड़झिरी गांव को नोटबंदी के बाद राज्य का पहला डिजिटल गांव होने का दर्जा मिला  था, लेकिन महज 2 साल बाद यहां हालात बदल चुके है। कैशलेस गांव से बड़झिड़ी अब वापस कैश की तरफ लौट आया है। गांव में अब लोग नोट देकर ही अपने काम निपटा रहे हैं और POS मशीनें धूल खा रही हैं। 2016 में नोटबंदी के बाद इस गांव को बैंक ऑफ बड़ौदा ने गोद लिया था और मध्य प्रदेश का पहला "डिजिटल गांव" होने का दावा था।

MP का पहला कैशलेस गांव था बड़झिरी - 

अब भोपाल जिले का बड़झिरी गांव एक बार फिर कैश की तरफ लौट आया है। मध्य प्रदेश के पहले "डिजिटल गांव" का खिताब पा चुके इस गांव में कैशलेस भुगतान को बढ़ावा देने के लिए कई काम तो हुए, लेकिन महज 2 साल बाद वो कायम नहीं रह सकें। TOI की खबर के मुताबिक गांव में अब कैश भुगतान दोबारा से शुरू हो गई है। दुकानदारों को दी गईं 12 से ज्यादा POS मशीनों धूल खा रही है। गांव वालों को अब कैशलेस भुगतान से कोई लेना-देना नहीं है।

गांव में धूल फांक रहीं बैंक ऑफ़ बड़ौदा की POS मशीने -

गांव के दुकानदारों ने कहा कि बड़झिरी को "डिजिटल गांव" घोषित करने के 2-3 महीने बाद तक सरकारी अधिकारियों और बैंक ने गांव में खूब काम किया, लेकिन उसके बाद ये ठंडा पड़ गया। एक दुकानदार ने कहा, "यहां केवल नकद भुगतान विकल्प उपलब्ध है।" दुकानदार ने बताया कि POS मशीनों को इस्तेमाल किए 1 साल से ऊपर हो गया है। दूसरे दुकानदार ने बताया कि इसका सबसे बड़ा कारण बिल पर 2 फीसदी अधिक चार्ज है।

गांव में स्कूल, अस्पताल, बिजली के लिए पैसे चाहिए, इसके बिना "डिजिटल विलेज" का कोई मतलब नहीं -

दुकानदार ने कहा, 'कौन बिल पर 2 फीसदी अधिक भुगतान करेगा? क्या आप तैयार हैं? यहां काफी कम लोग हैं जो कार्ड से भुगतान करते हैं। अधिकतर खरीददार गांव वाले हैं, जो 2 फीसदी अधिक नहीं दे सकते। यहां उधारी काफी ज्यादा है। यहां POS का इस्तेमाल असंभव है। कैशलेस भुगतान तो भूल जाइए, यहां गांव वालों के पास पैसे भी नहीं हैं।' दुकानदार ने कहा कि गांव में स्कूल, अस्पताल, बिजली के लिए पैसे चाहिए, इसके बिना "डिजिटल विलेज" का कोई मतलब ही नहीं है।

नोटबंदी के बाद बड़झिरी गॉव को बैंक ऑफ बड़ौदा ने लिया था गोद -

गांव के दोबारा कैश की तरफ लौटने पर बैंक ऑफ बड़ौदा के रीजनल मैनेजर ने कहा कि बड़झिरी में ई-लॉबी अभी भी काम कर रही है। "कभी यहां समय पर पैसे देने में परेशानी आ जाती है, लेकिन बाकी कोई दिक्कत नहीं है।" हालांकि मैनेजर ने माना कि गांव में कैशलेस भुगतान के प्रति जागरुकता अभियान जल्दी रोक दिया गया। उन्होंने कहा कि बड़झिरी में कैशलेस भुगतान को लेकर जागरुकता एक बड़ा मुद्दा है। ज्ञात हो कि 2016 में 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के बाद बैंक ऑफ बड़ौदा ने इस गांव को गोद लेकर MP राज्य के पहले "डिजिटल विलेज" का दर्जा हासिल किया था।

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