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मां गंगा ने क्यों दी थी अपने ही सात पुत्रों को मृत्यु!

मां शब्द सुनते ही संसार में शायद ही कोई ऐसा प्राणी हो, जिसके हृदय में कोमल भावनाएं ना उमड़ने लगे। हर व्यक्ति के जीवन में मां ही तो वह एकमात्र अस्तित्व है, जो हर परिस्थिति में संतान को समझने

मां गंगा ने क्यों दी थी अपने ही सात पुत्रों को मृत्यु!

नई दिल्ली : मां शब्द सुनते ही संसार में शायद ही कोई ऐसा प्राणी हो, जिसके हृदय में कोमल भावनाएं ना उमड़ने लगे। हर व्यक्ति के जीवन में मां ही तो वह एकमात्र अस्तित्व है, जो हर परिस्थिति में संतान को समझने, सुरक्षित रखने और साथ खड़े होने का भरोसा देती है। जन्म के बाद मां के आंचल में स्वयं को सबसे सुरक्षित मानने वाला शिशु समय के साथ अधेड़ या वृद्ध हो जाए, तब भी मां की गोद उसके लिए वैसी ही अमूल्य बनी रहती है।

ऐसी मातृशक्ति, जगत जननी मां गंगा ने अपने ही सात पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया था! बात अविश्वसनीय लगती है, पर महाभारत में इस कथा का उल्लेख मिलता है।

राजा के हर्ष का कोई अंत ना था
कई दिन सुखपूर्वक बीते और समय के साथ गंगा गर्भवती हुईं। राजा के हर्ष का कोई अंत ना था, वे आतुरता से आने वाले युवराज की प्रतीक्षा कर रहे थे। बस, इसी समय वह अनहोनी हो गई, जिस पर कोई विश्वास नहीं कर सकता था। पुत्र के जन्म लेते ही गंगा ने उसे नदी में प्रवाहित कर दिया। राजा तड़प उठे, पर विवाह के समय दिए गए वचन के चलते वह कोई प्रश्न ना कर सके।

राजा बहुत निराश हो चुके थे
समय चक्र चलता रहा और हर बार प्रसूति के बाद गंगा अपने पुत्रों को नदी की गोद में डालती चली र्गइं। इस तरह सात पुत्र काल के गाल में समा चुके थे। राजा बहुत निराश हो चुके थे और अब अपने ही पुत्रों की अपने सामने होने वाली हत्या उनके लिए असहनीय हो गई थी। इसके बाद जब आठवें पुत्र का जन्म हुआ और रानी गंगा उसे नदी को भेंट करने चली, तब राजा शांतनु स्वयं को रोक ना सके। उन्होंने दौड़कर गंगा के हाथ से शिशु को छीन लिया और क्रोधित हो उठे।

अब मुझे आपका परित्याग करना होगा गंगा द्रवित हो उठीं। उन्होंने राजा पर क्रोध नहीं किया। गंगा ने कहा कि महाराज, आपने अपना वचन तोड़ दिया, सो अब मुझे आपका परित्याग करना होगा। जाने से पहले मैं आपके मन में उमड़ रहे प्रश्नों का उत्तर अवश्य दूंगी। आप यही जानना चाहते हैं ना कि मां होकर भी मैंने अपने ही पुत्रों का जीवन क्यों छीना? तो सुनिए महाराज, कोई भी मां अपनी ही संतान को कभी सहर्ष मृत्यु नहीं दे सकती, लेकिन साथ ही यह भी सच है कि कोई भी मां अपनी संतान को तिल-तिल मरते नहीं देख सकती। मैं अपनी संतानों का भविष्य जानती थी। मेरे आठों पुत्र शापित यक्ष हैं। इनका जन्म ही हर पल दुख सहने के लिए हुआ था।

धारा में प्रवाहित कर मुक्त कर दिया इसीलिए जीवन भर के कष्ट से बचाने के लिए मैंने दिल पर पत्थर रखकर उन्हें अपनी ही धारा में प्रवाहित कर मुक्त कर दिया। ये अंतिम शापित यक्ष था, जिसे आपने बचा लिया। आज अगर आप चुप रह जाते, तो हमारा नौवां पुत्र पूरे संसार के लिए वरदान होता, लेकिन भाग्य का लिखा कौन बदल सकता है। अब आप स्वयं अपने इस पुत्र को शापित जीवन का दंश झेलते देखेंगे। मैं इसे लेकर आपसे आज्ञा लेती हूं।

पितामह भीष्म मां के अभाव में शिशु जीवित नहीं रह पाएगा। इसे आपके वंश के अनुसार योग्य बनाकर आपको वापस लौटाउंगी। ऐसा वचन देकर मां गंगा नवजात शिशु को लेकर अपने लोक चली गईं। आगे चलकर यही शिशु पितामह भीष्म बना, जिन्हें कभी कोई सांसारिक सुख प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि हर कदम पर दुख ही दुख झेलकर वे कठिन मृत्यु को प्राप्त हुए।

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