नि:संदेह पुलिस-प्रशासन को यह अधिकार नहीं है कि वह निर्दोष युवाओं पर ज्यादती करे या उन्हें रोमियो बताकर उनका तमाशा बनाए। अगर ऐसा कोई करता है तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी । सरकार ने ऐसे पुलिसकर्मियों को चेतावनी भी दिया है कि वह अति उत्साह में ऐसा कोई कदम न उठाये जिससे कि युवाओं में खौफ बैठ जाये । कुछ अति उत्साही पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई भी हुई है। आपको यह भी बता दे कि छेडख़ानी की छोटी-छोटी घटनाएं ही भयंकर अपराध का कारण बनती हैं और फिर कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ते देर नहीं लगती। यूपी में कानून-व्यवस्था की स्थिति वैसे ही अच्छी नहीं है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक इस अभियान से महिलाएं खुश हैं वहीं स्कूल-कालेज जाने वाली छात्राएं भी राहत महसूस कर रही हैं। सार्वजनिक स्थानों और स्कूल-कालेज के आसपास मंडराने वाले रोमियो जैसे ईद का चाँद हो गए हैं और ढ़ुंढ़े नहीं मिल रहे हैं
अभी पिछले दिनों ही कैग ने खुलासा किया है कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध में लगातार वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है 2010-11 में उत्तर प्रदेश में बलात्कार की जहां 1582 घटनाएं हुई वहीं 2014-15 में यह आंकड़ा बढक़र दोगुना यानी 2945 तक पहुंच गया। इसी तरह 2013-14 के मुकाबले 2014-15 में 43 फीसद अपराध में वृद्धि हुई। रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश प्रथम पायदान पर था। महिलाओं से बलात्कार के मामले में 59 फीसद नाबालिग लड़कियों को शिकार बनाया गया है। आंकड़ों के मुताबिक 2010 से 2015 के बीच हुए इन अपराधों का 55 फीसद शिकार नाबालिग लड़कियां हुई हैं।
तकरीबन 40 फीसद से अधिक बलात्कार पीडि़ता की उम्र 10 वर्ष या उससे भी कम है। आंकड़ों के मताबिक 2013-14 में छेड़छाड़ की घटनाएं 73 फीसद तक पहुंच गयी। यानी बीते पांच सालों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में तकरीबन 61 फीसद की वृद्धि हुई है। इस स्थिति के लिए बहुत से कारण हैं लेकिन इसमें एक मुख्य कारण जनसंख्या के अनुपात में पुलिसकर्मियों की भारी कमी भी है।
2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 20 करोड़ है और इनमें 9.53 करोड़ महिलाएं हैं। सुरक्षा व्यवस्था पर अगर बात करें तो यहां कुल पुलिसकर्मियों की संख्या मात्र 1.63 लाख है। इनमें महिला पुलिसकर्मियों की संख्या महज 7800 है। इस तरह 81 पुलिसकर्मियों के जिम्मे तकरीबन एक लाख की जनसंख्या है। यह आवश्यक है कि राज्य की नई सरकार महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए राज्य में रिक्त पुलिस के पदों को भरे और इसमें 33 फीसदी महिला पुलिसकर्मियों का स्थान सुनिश्चित करे। वर्तमान समय में राज्य में कुल 4.5 फीसद ही महिला पुलिसकर्मी हैं।
अगर राज्य के सभी थानों और महत्वपूर्ण स्थानों पर महिला पुलिसकर्मियों की नियुक्ति होती है तो नि:संदेह महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में कमी आएगी। लेकिन यह एकमात्र उपाय नहीं है। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों पर लगाम कसने के लिए लोगों की सोच में भी परिवर्तन लाना होगा। जब तक सोच में बदलाव नहीं होगा तब तक कानून गढऩे से कुछ नहीं होने वाला। निर्भया कानून के अस्तित्व में आने के बाद उम्मीद जगी थी कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों में कमी आएगी।
लेकिन आंकड़ों पर ध्यान करें तो हालात पहले से भी अधिक बदतर हुए जा रहे हैं।2004 में बलात्कार के कुल 18233 मामले दर्ज हुए जबकि वर्ष 2009 में यह आंकड़ा बढक़र 21397 हो गया। इसी तरह वर्ष 2012 में 24923 मामले दर्ज किए गए और 2014 में यह संख्या 36735 हो गयी। गौर करें तो 2014 का आंकड़ा वर्ष 2004 के मुकाबले दोगुनी है। भारत में हर एक घंटे में 22 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। ये वे आंकड़े हैं जो पुलिस द्वारा दर्ज किए जाते हैं। अधिकांश मामले में तो पुलिस रिपोर्ट दर्ज करती ही नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं को सुरक्षा उपलब्ध कराने के बावजूद भी 2014 में प्रतिदिन 100 महिलाओं का बलात्कार हुआ और 364 महिलाएं यौनशोषण का शिकार हुई।
रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में केंद्रशासित और राज्यों को मिलाकर कुल 36735 मामले दर्ज हुए। इससे यह पता चलता है कि हर वर्ष बलात्कार के मामले में वृद्धि हुई है। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि उत्तर प्रदेश सरकार एंटी रोमियो अभियान के खिलाफ गढ़े जा रहे कुतर्को से विचलित हुए बिना महिला सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित करें।
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