(सी.एम.एस. ने आरटीई 2009 के तहत अपात्र पाये गये बच्चों के संबंध में बेसिक शिक्षा अधिकारी को पुनः भेजा पत्र)
लखनऊ, 29 सितम्बरः बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा सिटी मोन्टेसरी स्कूल की मान्यता खत्म करने की सिफारिश काउन्सिल फॉर द इंडियन स्कूल सार्टिफिकेट एक्जामिनेशन (सीआईसीएसई) से करने संबंधी पत्र के बारे में सी.एम.एस. प्रबन्धन ने आज एक बार फिर से पूरे तथ्यों के साथ बेसिक शिक्षा अधिकारी को अवगत कराया है। हालांकि सी.एम.एस. प्रबन्धन इससे पहले भी अपात्र बच्चों का दाखिला न लेने के कारण शिक्षा विभाग को 3 अगस्त को अवगत करा चुका था। विदित हो कि इस वर्ष शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत कुल 270 बच्चे सी.एम.एस. में दाखिल हेतु आवन्टित किये गये थे, जिनमें से मात्र 174 बच्चे ही दाखिले हेतु आये। बाद में, इनमें से 148 बच्चों को बेसिक शिक्षा अधिकारी ने अपने 4 अगस्त को भेजे पत्र में स्वयं ही अपात्र माना और मात्र 26 बच्चे ही दाखिले हेतु पात्र माने, परन्तु इन 26 बच्चों में भी 5 बच्चे स्कूल के वार्ड के बाहर के पाये गये, 15 बच्चे पहले से ही किसी न किसी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, 3 बच्चे दुर्बल वर्ग के नहीं थे, 2 बच्चे 6 वर्ष से कम उम्र के थे तथा 1 बच्चा पात्र पाया गया, जिसका दाखिला सी.एम.एस. में कर लिया गया। इससे पहले, मई में 1 पात्र बच्चे का दाखिला लिया गया था। यहाँ उल्लेखनीय है कि 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की पात्रता न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है।
सी.एम.एस. के मुख्य जन-सम्पर्क अधिकारी श्री हरि ओम शर्मा ने बताया कि सी.एम.एस. आरटीई अधिनियम के तहत पात्रता की सभी शर्तों को पूरा करने वाले किसी भी बच्चे का प्रवेश लेने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। ऐेसे में अगर बेसिक शिक्षा अधिकारी को लगता है कि सी.एम.एस. ने किसी पात्र बच्चे का प्रवेश नहीं लिया है तो उसकी सूचना हमें तत्काल दें ताकि विद्यालय पात्र बच्चों को दाखिला तुरन्त मिल सके या उनकी अपात्रता के बारे में बेसिक शिक्षा
आधिकारी को सूचित किया जा सके।
श्री शर्मा ने बताया कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के अन्तर्गत यदि कोई निजी स्कूल तथ्यों को छुपाकर अथवा मिथ्या दावे के आधार पर अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के अन्तर्गत अपात्र बच्चों का दाखिला लेकर उनकी फीस की प्रतिपूर्ति सरकार से लेता है तो ऐसे में वह निजी स्कूल उत्तर प्रदेश शिक्षा के अधिकार अधिनियम नियमावली 2011 के नियम 8(6) के तहत तीन प्रकार के दण्ड का भागीदार हो जायेगा, जो कि इस प्रकार है :- (1) उस विद्यालय की मान्यता वापस ली जायेगी। (2) विद्यालय से प्रतिपूर्ति के लिए ली गई धनराशि की दुगुनी धनराशि वसूल की जायेगी। प्रतिपूर्ति की धनराशि की वसूली के अभाव में विद्यालय की सम्पत्ति नीलाम की जायेगी तथा (3) भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत कार्यवाही की जायेगी अर्थात स्कूल प्रबंधक को जेल भेजा जायेगा। ऐसे में उपरोक्त दण्ड से बचने के लिए निजी स्कूलों का यह अधिकार है कि वे शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत केवल पात्र बच्चों को ही अपने स्कूल में प्रवेश दें, जैसा कि सी.एम.एस. ने किया है।
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