~ # वसन्त - पर्व पर तीन छन्द निवेदित # ~ - -
मेरे भारत में हो सदैव के लिये - - - वसन्त का बसेरा माँ !
# एक #
घिर रहे घृणा के हैं घन - घोर हर ऒर , वृक्ष पाप के हैं देखो फलते ही जा रहे ।
प्रगति के पाँव पर हो रहे प्रहार , ऐसी - कुटिल - कुचाली चाल चलते ही जा रहे।
सिसके सुहानी रात , शंकित शशांक और - शान्ति - सर्जना के सूर्य ढलते ही जा रहे।
सदभावनाएँ और सुषमा वसुन्धरा की - देखो दानवों के दल दलते ही जा रहे।
# दो #
मधुमास के दिवस भटके मुसाफिर - से , प्रेमियों के मन को भी अब न सुहाते हैं।
होकर मगन वृक्ष झूमने में झिझकें व - भावुक ये हरियाले खेत न लुभाते हैं।
बुलबुल के तरानों में छिपी हैं वेदनाएँ , वाटिका में फूल खिलने में सकुचाते हैं।
अलसाये - अलसाये अलियों के दल और - ताल पर तैरते कमल अकुलाते हैं।
# तीन #
लगें रुष्ट भावुक विवशता में ऋतुराज , ऐसे पतझार ने है डाल दिया डेरा माँ !
प्रकृति धरा पे जब दिखती दुखी - सी खुद, तब कैसे सम्भव है स्वर्णिम सबेरा माँ !
सुना , तेरे पद - पंकजों में बसता वसन्त , इसलिये टेरता तुझे है लाल तेरा माँ !
करो कुछ ऐसी कृपा - कोर मेरे भारत में - हो सदैव के लिये वसन्त का बसेरा माँ !
# Kamal Kishor Bhavuk #
लखनऊ, 7897747107
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