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Successor of the Dalai Lama: कैसे चुना जाएगा दलाई लामा का उत्तराधिकारी, इसे लेकर चीन-भारत-अमेरिका में मतभेद, क्या है ऐतिहासिक परंपरा..

Successor of the Dalai Lama: दलाई लामा ने हाल ही में यह पुष्टि की कि उनका उत्तराधिकारी चुना जाएगा, और यह परंपरा जारी रहेगी। यह मामला इसलिए खास है क्योंकि इससे धार्मिक, राजनीतिक, और भू-राजनीतिक पहलू जुड़े हैं, जो चीन, भारत और अमेरिका के बीच चर्चाओं का विषय बन गए हैं।

Successor of the Dalai Lama: कैसे चुना जाएगा दलाई लामा का उत्तराधिकारी, इसे लेकर चीन-भारत-अमेरिका में मतभेद, क्या है ऐतिहासिक परंपरा..

Successor of the Dalai Lama: दलाई लामा ने हाल ही में यह पुष्टि की कि उनका उत्तराधिकारी चुना जाएगा, और यह परंपरा जारी रहेगी। यह मामला इसलिए खास है क्योंकि इससे धार्मिक, राजनीतिक, और भू-राजनीतिक पहलू जुड़े हैं, जो चीन, भारत और अमेरिका के बीच चर्चाओं का विषय बन गए हैं। दलाई लामा ने स्पष्ट किया कि उनका उत्तराधिकारी का चयन उनके द्वारा स्थापित गादेन फोडरंग ट्रस्ट द्वारा किया जाएगा, जिसमें केवल तिब्बती बौद्धों के धार्मिक प्रमुखों का दखल होगा और किसी बाहरी ताकत का हस्तक्षेप नहीं होगा।

दलाई लामा के उत्तराधिकारी का इतिहास

  • दलाई लामा, तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के सर्वोच्च नेता, जिन्हें करुणा के अवतार अवलोकितेश्वर के रूप में पूजा जाता है, उनके उत्तराधिकारी का चयन एक सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा है। यह उपाधि पहली बार 1578 में मंगोल शासक अल्तान खान द्वारा सोनम ग्यात्सो को दी गई थी, जो तीसरे दलाई लामा के रूप में जाने गए।
  • इसके बाद, तिब्बती बौद्ध धर्म के पहले और दूसरे दलाई लामा, गेंदुन द्रब और गेदुन ग्यात्सो, को भी उसी परंपरा में शामिल किया गया। दलाई लामा को तिब्बती समाज में सर्वोच्च आध्यात्मिक शक्ति और तिब्बती पहचान का प्रतीक माना जाता है।
  • तिब्बती बौद्धों का विश्वास है कि हर दलाई लामा में अपने पूर्ववर्ती की आत्मा का पुनर्जन्म होता है, और वे प्रबुद्ध पूर्वजों के रूप में जन्म लेते हैं। 17वीं शताब्दी में पांचवें दलाई लामा ने गदेन फोडरांग सरकार के माध्यम से तिब्बत में आध्यात्मिक और राजनीतिक सत्ता स्थापित की, जो 1951 तक बरकरार रही।
  • हालांकि, 1951 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और इसके बाद 14वें दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी, जहां से उन्होंने तिब्बत की निर्वासित सरकार का संचालन किया।
  • यह परंपरा आज भी जारी है, और हर नए दलाई लामा का चयन पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें उनके पिछले जन्म के लक्षणों और संकेतों के आधार पर एक बच्चा चुना जाता है।

दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन की प्रक्रिया

  • तिब्बती बौद्ध परंपरा में दलाई लामा का चयन एक विशेष पुनर्जन्म सिद्धांत पर आधारित है। मान्यता है कि वर्तमान दलाई लामा के देहांत के बाद उनकी आत्मा एक नवजात शिशु के रूप में पुनः जन्म लेती है।
  • पिछले दलाई लामा के निधन के बाद एक शोक काल होता है, जिसके बाद वरिष्ठ लामा एक खोज प्रक्रिया शुरू करते हैं। इस प्रक्रिया में वे विभिन्न संकेतों, सपनों और भविष्यवाणियों का विश्लेषण करते हैं।
  • इसके अलावा, दलाई लामा के अंतिम संस्कार के समय उनकी चिता से निकलने वाले धुएं की दिशा और मृत्यु के समय जिस दिशा में उन्होंने अंतिम दर्शन किए, इन सभी बातों का भी उत्तराधिकारी की खोज में महत्वपूर्ण योगदान होता है।

चीन का हस्तक्षेप और विवाद

चीन इस पूरे चयन प्रक्रिया में अपनी हस्तक्षेप की बात करता है। चीनी सरकार का कहना है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन केवल चीन के अंदर किया जा सकता है। चीन ने 2007 में एक कानून बनाया था, जिसके अनुसार तिब्बत के धर्मगुरुओं को चीन के धार्मिक परंपराओं और कानूनी प्रक्रिया के अनुसार चयनित किया जाना चाहिए। इसके अंतर्गत ‘गोल्डन अर्न’ (सोने के कलश) प्रक्रिया का प्रस्ताव है, जिसके तहत दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने के लिए नामों को एक कलश में डाला जाता है, और जिस नाम पर लकी ड्रॉ होता है, वही उत्तराधिकारी होगा।

चीन का यह दावा तिब्बती बौद्धों और विशेषकर दलाई लामा द्वारा अस्वीकार किया गया है, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह धार्मिक स्वायत्तता पर हमला है। 14वें दलाई लामा ने किताब में भी अपील की है कि तिब्बती लोग राजनीतिक कारणों से चयनित दलाई लामा को न मानें, खासकर यदि वह चीन द्वारा चुना गया हो।

भारत और अमेरिका का रुख

भारत की भूमिका:

भारत में 1 लाख से अधिक तिब्बती बौद्ध रहते हैं, और भारत में दलाई लामा ने 1959 में तिब्बत से भागकर आश्रय लिया था।

भारत के लिए, दलाई लामा न केवल एक धार्मिक गुरु हैं, बल्कि तिब्बत और चीन के बीच विवादों का भी अहम हिस्सा हैं। उनका भारत में रहना और तिब्बतियों का निर्वासित सरकार का संचालन भारत और चीन के बीच संज्ञेय विवादों का कारण बनता है।

भारत ने हमेशा चीन के दखल को नकारा है और तिब्बती बौद्धों के स्वतंत्र चयन के अधिकार को स्वीकार किया है।

अमेरिका की भूमिका:

अमेरिका ने हमेशा तिब्बती बौद्धों की धार्मिक स्वायत्तता के अधिकार का समर्थन किया है और चीन के दखल को नकारा है।

2015 में, जब चीन ने दलाई लामा के चयन में दखल देने की बात की, तो अमेरिकी अधिकारियों ने इसे अमान्य करार दिया था।

2020 में, अमेरिकी सरकार ने तिब्बत नीति और समर्थन कानून (TPSA) को पारित किया, जिसमें यह साफ किया गया कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी तिब्बत के बौद्धों द्वारा ही चुना जाएगा, और इस मामले में चीन का कोई दखल नहीं होगा।

दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चुनाव: क्या हो सकता है बदलाव?

14वें दलाई लामा ने संकेत दिया है कि इस बार उत्तराधिकारी का चयन उनके जीवित रहने के दौरान ही हो सकता है, ताकि चीन की हस्तक्षेप को टाला जा सके। उनका कहना है कि उत्तराधिकारी संभवतः भारत या लद्दाख, उत्तराखंड, या हिमाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में जन्मेगा, न कि चीन के नियंत्रण वाले क्षेत्र में।

इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि उनका उत्तराधिकारी लड़का नहीं, बल्कि लड़की भी हो सकती है। इसके लिए गादेन फोडरंग ट्रस्ट द्वारा चयन प्रक्रिया की निगरानी की जाएगी।

भारत, अमेरिका, और चीन के बीच भू-राजनीतिक प्रभाव

दलाई लामा का उत्तराधिकारी चयन सिर्फ एक धार्मिक मामला नहीं है, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति से भी जुड़ा हुआ है। चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया और दलाई लामा के निर्वासन के बाद से उसे भारत और अमेरिका के विरोध का सामना करना पड़ा। दोनों देशों ने हमेशा तिब्बतियों की धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन किया है और चीन के धार्मिक हस्तक्षेप को अस्वीकार किया है।

इस मुद्दे को लेकर भारत और अमेरिका के लिए यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह चीन के आंतरिक मामलों में विदेशी दखल और धार्मिक स्वायत्तता के मुद्दे को चुनौती देता है।

दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा बन चुका है। चीन का हस्तक्षेप, भारत और अमेरिका का समर्थन, और दलाई लामा के नए दृष्टिकोण से यह मामला और भी महत्वपूर्ण हो गया है। यह सिर्फ धार्मिक विवाद नहीं बल्कि राजनीतिक और वैश्विक प्रभावों से भी जुड़ा है, जो आने वाले वर्षों में चीन, भारत, और अमेरिका के रिश्तों को प्रभावित कर सकता है।

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