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जानें क्यों मनाया जाता है महाशिवरात्रि पर्व

भारतीय जीवन में लोक पर्व वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में भले ही धूमिल हो रहे हों परंतु इनका वैज्ञानिक पक्ष आस्था के आगे उजागर नहीं हो पाता। भारतीय आस्था में चाहे सूर्य ग्रहण हो या कुंभ का पर्व, दोनों ही समान महत्व रखते हैं।

जानें क्यों मनाया जाता है महाशिवरात्रि पर्व

भारतीय जीवन में लोक पर्व वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में भले ही धूमिल हो रहे हों परंतु इनका वैज्ञानिक पक्ष आस्था के आगे उजागर नहीं हो पाता। भारतीय आस्था में चाहे सूर्य ग्रहण हो या कुंभ का पर्व, दोनों ही समान महत्व रखते हैं। 

महा शिवरात्रि पर्व ज्ञान के प्राकट्य एवं कल्याण के उद्भव का पर्व है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन भगवान शिव का दिव्य अवतरण हुआ। तुलसीदास जी रामचरित मानस में लिखते हैं : 

‘‘भवानी शंकरौ वंदे श्रद्धा विश्वास रुपिणौ। याश्यां विना न पश्यन्ति  सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम्।’’ 

मैं श्रद्धा और विश्वास के प्रतिरूप भगवान भवानी शंकर की वंदना करता हूं, जिनकी कृपा के बगैर सिद्धों, ऋषियों, मुनियों को हृदय में ईश्वर के दर्शन नहीं होते। भगवान राम स्वयं कहते हैं कि भगवान शिव की कृपा के बिना मेरी प्राप्ति संभव नहीं है।

मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में शिवरात्रि को मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं इसलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा जाता है।  

एक मतानुसार इस दिन शिव विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अद्र्धरात्रि के समय करोड़ों सूर्यों के तेज के समान ज्योर्तिलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।

इस दिन चंद्रमा क्षीण होगा और सृष्टि को ऊर्जा प्रदान करने में अक्षम होगा  इसलिए आलौकिक शक्तियां प्राप्त करने का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय है जब ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती हैं। 

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