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फिल्म समीक्षा : द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर

अगर इस वीकएंड आप इस बात को लेकर भ्रम में हैं कि एक साथ रिलीज हुई फिल्मों उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक और द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर में से कौन सी देखनी चाहिए और कौन सी मिस करनी चाहिए तो जवाब सीधा और सपाट है, उरी उन दर्शकों के लिए जिनके दिल में देशभक्ति है

फिल्म समीक्षा : द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर

फिल्म :   द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर। 
कलाकार : अनुपम खेर, अक्षय खन्ना, दिव्या सेठ शाह और सुजैन बर्नेट आदि। 
निर्देशक : विजय गुट्टे
रेटिंग- 3/5 

अगर इस वीकएंड आप इस बात को लेकर भ्रम में हैं कि एक साथ रिलीज हुई फिल्मों उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक और द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर में से कौन सी देखनी चाहिए और कौन सी मिस करनी चाहिए तो जवाब सीधा और सपाट है, उरी उन दर्शकों के लिए जिनके दिल में देशभक्ति है और द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर उनके लिए है जो देश के लिए दिमाग से सोचते हैं। 

द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर की कहानी शुरू होती है आम चुनाव के नतीजों से और सोनिया गांधी की उस कथित त्याग से जिसमें उन्होंने एक अर्थशास्त्री को देश का प्रधानमंत्री बना दिया. देश को आर्थिक तरक्की के मुहाने तक ले आने वाला एक शख्स कैसे सियासत की गुफा में जाकर फंस जाता है, यही इस फिल्म का सार है |

मनमोहन सिंह को ये फिल्म एक हैरान, परेशान और किन्हीं किन्हीं दृश्यों में मानसिक रूप से बलवान व्यक्ति के रूप में पेश करती है। लेकिन, फिल्म का असली एंगल हैं संजय बारू। एक पत्रकार को कैसे लगने लगता है कि वह किसी बड़े नेता का करीबी होने के बाद उसका भाग्यविधाता है, यह देखना फिल्म में असली दिलचस्पी जगाता है। 

फिल्म द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर को इसके कलाकारों की अदाकारी के लिए भी देखना बनता है। और, इस विभाग में सौ में से सौ नंबर जिस कलाकार ने हासिल किए हैं, वह है अक्षय खन्ना। हिंदी फिल्मो में फोर्थ वॉल से बात करने (दर्शकों से संवाद) का संभवत: यह पहला प्रयोग है। अक्षय खन्ना ने संजय बारू के दिमाग में चलती रहने वाली योजनाओं को बहुत ही कौशल से अभिनय के जरिए उतारा है। 

अनुपम खेर के किरदार के बारे में इतना कुछ लिखा-कहा जा चुका है कि उनकी अदाकारी पूरी फिल्म में तलवार की धार पर चलने जैसी हो जाती है।  थोड़ा टाइम लगता है दर्शकों को इस किरदार में अनुपम खेर को स्वीकार करने में लेकिन आखिर तक आते आते अनुपम खेर भी छाप छोड़ने में सफल रहते हैं। 

इन दोनों के अलावा सोनिया गांधी बनी सुजैन बर्नेट की अदाकारी भी लाजवाब है। आहना कुमरा और अर्जुन माथुर को प्रियंका और राहुल के रूप में फिलर के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। 

आपको बता दें कि- भारत में राजनीति या राजेनताओं पर फिल्म बनाना अब तक आसान नहीं था, लेकिन 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' ने इस सिलसिले को शुरू किया है। संभवत: यह पहली ऐसी फिल्म है जिसमें उन सभी नेताओं को नाम के साथ दर्शाया गया है जो राजनीतिक के क्षेत्र में बड़े नाम रहे हैं। 

'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' एक ऐसा विषय है जिस पर बेहतरीन फिल्म बनाई जा सकती थी, लेकिन विजय उसका पूरा उपयोग नहीं कर पाए। बावजूद इसके जिन्हें राजनीति में रूचि है वे इस फिल्म को देख सकते हैं |

पहले हाफ में पीएमओ ऑफिस, उसके अंदर होने वाली हलचल, प्रधानमंत्री को काबू में रखने के लिए कांग्रेस की रणनीति, न्यूक्लियर डील पर मनमोहन सिंह का कड़ा रूख वाले प्रसंग अच्छे लगते हैं। दूसरे हाफ में फिल्म दिशा ही भटक जाती है और निर्देशक की पकड़ कमजोर पड़ जाती है.यहां बारू का पलड़ा भारी दिखाया गया है कि उनके बिना मनमोहन सिंह असहाय हो जाते हैं। 

निर्देशक के रूप में विजय बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं करते। उन्होंने अपना प्रस्तुतिकरण 'राजनीति के गलियारों के गपशप' जैसा रखा है, इससे फिल्म हल्की-फुल्की लगती है, लेकिन उनके निर्देशन में बहुत ज्यादा गहराई नहीं है। वो तो विषय उन्हें दमदार मिल गया इसलिए उनका काम आसान हो गया। निर्देशक ने राहुल गांधी को 'पप्पू' वाली छवि के रूप में पेश किया है जिससे उसके इरादों पर सवाल खड़े होते हैं। 

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