
POV: ईरान और इजरायल के बीच 12 दिनों तक चले सैन्य संघर्ष का अंत भले ही युद्धविराम के साथ हो गया हो, लेकिन इस दौरान दोनों देशों को आर्थिक मोर्चे पर भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इस जंग ने न सिर्फ अरबों डॉलर की चपत लगाई है, बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक अस्थिरता की भी नींव रख दी है।
ईरान को हुआ अरबों डॉलर का नुक़सान
रक्षा विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार, ईरान ने इस युद्ध में अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का करीब 6 से 9 प्रतिशत तक गंवा दिया है। सैन्य विश्लेषक क्रेग के मुताबिक, देश को 24 से 35 अरब डॉलर तक का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान हुआ है।
अमेरिका और इजरायल द्वारा किए गए हवाई हमलों में ईरान के कई बुनियादी ढांचे ध्वस्त हो गए, जिनमें परमाणु प्रतिष्ठान, तेल रिफाइनरियां और ऊर्जा संयंत्र शामिल हैं। इन्हें फिर से तैयार करने में अरबों डॉलर की लागत आएगी और समय भी काफी लगेगा।
ऊर्जा प्रतिष्ठानों पर हमलों से ईरान का तेल निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जो उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इससे देश की आर्थिक रिकवरी और अधिक कठिन हो सकती है।
इजरायल को भी झेलनी पड़ी बड़ी मार
दूसरी ओर, इजरायल को भी इस संघर्ष में बड़ा आर्थिक झटका लगा है। ईरानी मिसाइल हमलों से करीब 3 अरब डॉलर से अधिक के नुकसान का अनुमान है। इसमें क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे की मरम्मत और स्थानीय व्यवसायों को मुआवज़ा देने की राशि शामिल है।
इजरायल के कर विभाग प्रमुख शाय अहारोनोविच ने कहा, "यह हमारे इतिहास का सबसे बड़ा आर्थिक नुकसान है।" हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अब तक के शुरुआती आकलन हैं और अंतिम आंकड़े इससे भी अधिक हो सकते हैं।
वित्त मंत्री बेजलेल स्मोट्रिच के मुताबिक, युद्ध की कुल लागत करीब 12 अरब डॉलर तक हो सकती है। वहीं, इजरायल सेंट्रल बैंक के गवर्नर अमीर यारोन ने इस आंकड़े को कुछ कम बताते हुए, इसे लगभग 6 अरब डॉलर के करीब बताया है।
अमेरिका को भी लगा झटका, लेकिन वह संभाल सकता है भार
इस संघर्ष में अमेरिका ने भी ऑपरेशन "मिडनाइट हैमर" के जरिए हिस्सा लिया था, जिसमें उसने ईरान की परमाणु क्षमताओं को लक्षित किया। इस ऑपरेशन में 1 से 2 अरब डॉलर की लागत आने का अनुमान है। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि पश्चिम एशिया में अपनी रणनीतिक स्थिति बनाए रखने के लिए अमेरिका यह बोझ सहन कर सकता है।
ईरान की हालत ज्यादा नाजुक
इस युद्ध का आर्थिक असर दोनों देशों पर पड़ा है, लेकिन ईरान की स्थिति ज्यादा संकटपूर्ण है। पहले से ही अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और राजनीतिक अस्थिरता के कारण जूझ रहे ईरान को अब तेल निर्यात में गिरावट और परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमलों के चलते और ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं, इजरायल को अब अपने इतिहास के सबसे बड़े पुनर्निर्माण प्रयासों का सामना करना पड़ेगा, जो न केवल आर्थिक दृष्टि से भारी है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी जटिल।
12 दिन की यह जंग अब थम चुकी है, लेकिन इसके आर्थिक घाव अगले कई वर्षों तक महसूस किए जाएंगे। युद्धविराम के बाद दोनों देशों की प्राथमिकता अब अर्थव्यवस्था को स्थिर करना और बुनियादी ढांचे को बहाल करना होगी। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि ईरान को इस प्रक्रिया में कहीं अधिक वक्त और संसाधनों की जरूरत होगी।
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