फिल्म : जीरो
कलाकार : शाहरुख खान, अनुष्का शर्मा, कैटरीना कैफ
निर्देशक : आनंद एल. राय
निर्माता : गौरी खान
रेटिंग : 3.5/5
शाहरुख खान पहली बार अपनी सुपरस्टार वाली शख्सीयत से एक अलग किरदार में है। इस फिल्म के रचनाकार आनंद एल. राय जैसे सुलझे और संजीदा निर्देशक हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्हें कहानी सुनाने का सलीका आता है। इस फिल्म के लेखक हिमांशु शर्मा जैसे काबिल शख्स हैं, जिन्होंने "तनु वेड्स मनु" और "रांझणा" जैसी अच्छी फिल्में लिखी हैं, जो छोटे शहरों की धड़कनों को पहचानते हैं। लेकिन यह टीम उस टीम की तरह साबित हुई, जो कागज पर तो बहुत मजबूत दिखती है, लेकिन मैदान में अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर सकी।
यह कहानी है मेरठ के बउवा सिंह (शाहरुख खान) की, जिसका कद महज साढ़े 4 फीट है। उसका कद भले असामान्य है, लेकिन वह जिंदगी सामान्य लोगों जैसी जीना चाहता है। वह फिल्म स्टार बबीता (कैटरीना कैफ) का बहुत बड़ा प्रशंसक है और उसके सपने देखता है। विडंबना यह है कि लोग उसके साथ सामान्य व्यक्तियों की तरह व्यवहार नहीं करते। उसका दोस्त गुड्डू जीशान अय्यूब ही है, जो उसे थोड़ा-बहुत समझता है।
बउवा एक दिन मैरिज ब्यूरो चलाने वाले पांडेय (बृजेंद्र काला) के जरिये NSAR में काम करने वाली अंतरिक्ष वैज्ञानिक आफिया यूसुफजई भिंडर (अनुष्का शर्मा) से मिलता है, जो "सेरेब्रल पाल्सी" से पीड़ित है और मंगल ग्रह पर रॉकेट भेजने के अभियान की लीडर है। आफिया शुरू में तो बउवा को भाव नहीं देती, लेकिन बाद में उससे प्यार करने लगती है। बात शादी तक पहुंच जाती है। फिर कहानी में ट्विस्ट आता है और बउवा शादी वाले दिन ही सब छोड़ कर भाग जाता है बबीता से मिलने के लिए। आदित्य कपूर (अभय देओल) से प्यार में धोखा खा चुकी बबीता को वह अपनी अजीबोगरीब हरकतों से प्रभावित कर लेता है और उसके असिस्टेंट के रूप में काम करने लगता है। लेकिन एक दिन बबीता उसे जलील करके बाहर निकाल देती है। उसके बाद वह अपने दोस्त गुड्डू के साथ आफिया के पास अमेरिका पहुंच जाता है। आफिया मंगल ग्रह पर रॉकेट भेजने की तैयारी में जुटी है और श्रीनि (आर. माधवन) से उसकी शादी भी होने वाली है। बउवा उससे माफी मांगता है, लेकिन वह माफ नहीं करती है।
इस फिल्म में कई कमियां होने के बावजूद इंटरवल तक फिल्म ठीक ठाक चलती है, लेकिन इंटरवल के बाद यह पूरी तरह पटरी से उतर जाती है। क्लाइमैक्स में थोड़ी-सी संभावना थी, लेकिन "हैप्पी एंडिंग" के चक्कर में आनंद एल. राय वह मौका भी गंवा देते हैं। संवाद कहीं-कहीं अच्छे और रोचक हैं, खासकर इंटरवल के पहले, फिल्म का संगीत ठीक है। "जब तक जहां में सुबह शाम है" गाना काफी अच्छा है। नुसरत फतेह अली खान की एक कव्वाली "मैं रोज रोज तन्हा" को री-क्रिएट किया गया है। बाकी गाने कुछ खास असर नहीं छोड़ते। मनु आनंद की सिनमेटोग्राफी अच्छी है। आनंद राय ने अपनी फिल्म में VFX का इस्तेमाल अच्छा किया है। फिल्म की लंबाई ज्यादा है, इसे आराम से 20-25 मिनट कम किया जा सकता था। तब शायद फिल्म कुछ बेहतर होती|
फिल्म में शाहरुख के किरदार की शारीरिक संरचना भले अलग है, लेकिन पूरी फिल्म में लगा शाहरुख खान ही है। शाहरुख का अभिनय अपनी चिर-परिचत छाप लिए हुए है। अनुष्का का किरदार चुनौतीपूर्ण था और इसके लिए उन्होंने कोशिश भी खूब की है। काफी हद तक सफल भी रही हैं।
हालांकि इस किरदार को बहुत अच्छे से गढ़ा नहीं गया है। कैटरीना बस शो-पीस की तरह लगी हैं। जीशान अय्यूब ने हमेशा की तरह प्रभावित किया है। बउवा के पिता अशोक के रूप में तिग्मांशु धूलिया भी ठीक लगे हैं। अभय देओल और आर. माधवन अतिथि भूमिका में हैं। इनके अलावा, श्रीदेवी, दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट, जूही चावला भी फिल्म में झलक दिखला जाती हैं। सलमान खान भी एक गाने में हैं, जिसमें गणेश आचार्य और रेमो डिसूजा ने भी डांस के जलवे बिखेरे हैं।
नवीनतम न्यूज़ अपडेट्स के लिए Facebook, Twitter, व Google News पर हमें फॉलो करें और लेटेस्ट वीडियोज के लिए हमारे YouTube चैनल को भी सब्सक्राइब करें।