मुस्लिम दाऊदी बोहरा समुदाय की लड़कियों का खतना करने के खिलाफ दायर याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। खतना को लेकर दलीलें पेश हुईं। इस दौरान खतना को पूरी तरह बंद करने की मांग उठी।
इससे पहले पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि किसी भी धर्म के नाम पर कोई भी किसी लड़की के यौन अंग को कैसे छू सकता है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यौन अंगों को काटना लड़कियों की गरिमा और उनके सम्मान के खिलाफ है। कोर्ट के अलावा केंद्र सरकार ने भी अपनी आपत्ति दर्ज करवाते हुए कोर्ट में कहा था कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना जुर्म है और इस पर रोक लगनी चाहिए।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान खतना को पूर्णतः अपराध की श्रेणी में शामिल करने और गैर-जमानती करने के लिए मांग की गई। इसको लेकर कोर्ट का पक्ष भी अबतक याचिका के पक्ष में जा रहा है। इससे पहले केंद्र सरकार ने यह भी कहा था कि इसके लिए कानून के दंडविधान में सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है।
याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिवारी की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई जारी है। तिवारी ने कहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं। लड़कियों का खतना करना इंसानियत और कानून के खिलाफ है। साथ ही संविधान में समानता की गारंटी देने वाले अनुच्छेदों में 14 और 21 का सरेआम उल्लंघन है।
खतना एक दर्दनाक और खतरनाक परंपरा है। महिला योनि के एक हिस्से क्लिटोरिस को रेजर ब्लेड से काट कर खतना किया जाता है। वहीं कुछ जगहों पर क्लिटोरिस और योनि की अंदरूनी स्किन को भी थोड़ा सा हटा दिया जाता है।
सात साल की उम्र में मुस्लिम लड़की का खतना किया जाता है। इस दौरान योनि से काफी खून बहता है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, खतना चार तरीके का हो सकता है- पूरी क्लिटोरिस को काट देना, योनी की सिलाई, छेदना या बींधना, क्लिटोरिस का कुछ हिस्सा काटना।
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