किसी ने सही कहा है कि बेटा ही अपने पिता को हरा सकता है। ऐसे अनेक उदाहरण हर व्यक्ति के आस-पास देखने को मिल जाएंगे जब पिता को अपने बेटे के सामने झुकना पड़ा है। एक जनवरी को भी लखनऊ में ऐसा ही हुआ। 31 दिसंबर को आजम खान के दखल से जो समझौता हुआ था उसे एक जनवरी को अखिलेश ने तोड़ दिया। अखिलेश ने समाजवादी पार्टी का जो विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया उसमें मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया। इतना ही नहीं अखिलेश स्वयं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल को भी सपा के यूपी के अध्यक्ष पद से हटा दिया है। चूंकि अभी सत्ता की कमान अखिलेश के पास है इसलिए हाथोंहाथ लखनऊ के पार्टी दफ्तर पर भी कब्जा कर लिया है। अखिलेश का कहना है कि अब उनके नेतृत्व वाली पार्टी ही असली समाजवादी है। अखिलेश की इस कार्यवाही से साफ जाहिर है कि अब वे यूपी का चुनाव अकेले अपने दम पर लड़ेंगे। एक तरह से अखिलेश ने राजनीति के दंगल में अपने पिता को बुरी तरह हरा दिया है।
हालांकि मुलायम सिंह ने अखिलेश के अधिवेशन को असंवैधानिक बताया है और अपनी ओर से सपा का आपात राष्ट्रीय अधिवेशन 5 जनवरी को बुलाया है लेकिन सवाल उठता है कि मुलायम के अधिवेशन में सपा के कौन से पदाधिकारी आएंगे? अधिकांश पदाधिकारी तो अखिलेश के अधिवेशन में आ चुके हैं। नरेश अग्रवाल जैसे राज्यसभा सदस्य भी मुलायम को छोड़कर अखिलेश के साथ खड़े हैं। मुलायम के चचेरे भाई रामगोपाल यादव तो पहले से ही अखिलेश के साथ है। अब मुलायम को यह देखना होगा कि वे अपने बेटे से किस सीमा तक मुकाबला करते हैं।
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