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धर्म-अध्यात्म

इन मंदिरों में पूजे जाते हैं शैतान

महाभारत के नायकों की नहीं खलनायकों की भी पूजा होती है। उत्तराखंड के नेटवार से लगभग 12 किमी की दूरी पर हर की दून रोड पर स्थित सौर गांव में मुख्य खलनायक दुर्योधन को देव स्वरूप मान कर पूजा जाता है। देश-विदेश से

इन मंदिरों में  पूजे जाते हैं शैतान

महाभारत के नायकों की नहीं खलनायकों की भी पूजा होती है। उत्तराखंड के नेटवार  से लगभग 12 किमी की दूरी पर हर की दून रोड पर स्थित सौर गांव में मुख्य खलनायक दुर्योधन को देव स्वरूप मान कर पूजा जाता है। देश-विदेश से लोग यहां पूजन के लिए आते हैं। इस गांव से कुछ किलोमीटर दूर सारनोल गांव में दुर्योधन के परम मित्र कर्ण का भी मंदिर है।देश के आम जनमानस में रावण को भले ही बुराइयों का प्रतीक मानकर दशहरे पर उसका पुतला जलाया जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश में कानपुर के शिवाला इलाके में स्थित दशानन मंदिर में दशहरे को शक्ति के प्रतीक के रूप में रावण की पूरे विधि विधान से न केवल पूजा अर्चना होती है बल्कि श्रद्धालु तेल के दिए जलाकर मन्नतें मांगते हैं।  मध्य प्रदेश के विदिशा के रावण गांव में बसे लोग मानते हैं की रावण कान्यकुब्ज ब्राह्मण था और वह सभी गांववासी रावण के वंशज हैं इसलिए वहां रावण बाबा की पूजा और उनके नाम की आरती भी होती है।कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना मां का रूप लेकर श्री कृष्ण को दूध पिलाने लगी थी। भगवान ने उनकी इच्छा का मान रखते हुए दूध पिया फिर उनका उद्धार किया। गोकुल में पूतना का भी मंदिर है। इस मंदिर में पूतना की लेटी हुई मुद्रा में प्रतिमा विराजित है। उसकी छाती से श्री कृष्ण बाल रूप में दूध का पान कर रहे हैं।झांसी के पंचकुइयां इलाके में चिन्‍ताहरण हनुमान जी का मंदिर है। इस मंदिर में हनुमान जी के साथ राक्षसों का भी पूजन किया जाता है और यह दो राक्षस हैं रावण के दो प्रिय अहिरावण और महिरावण। झांसी के पंचकुइयां इलाके में चिन्‍ताहरण हनुमान जी का मंदिर है। इस मंदिर में हनुमान जी के साथ राक्षसों का भी पूजन किया जाता है और यह दो राक्षस हैं रावण के दो प्रिय अहिरावण और महिरावण। प्रतिमा के दाएं ओर हनुमान जी के पुत्र मकरध्‍वज भी है। मंदिर में प्रत्येक सोमवार और मंगलवार को भक्‍त आटे का दिया जलाकर अपने मन की इच्छाओं को पूर्ण करवाने के लिए प्रार्थना करते हैं। जब उनके मन की इच्छा पूर्ण हो जाती है तो चढ़ावा अर्पित किया जाता है। हैरान करने वाली बात यह है की मंदिर में चढ़ने वाला चढ़ावा हनुमान जी के साथ-साथ दोनों राक्षसों के लिए भी होता है। मंदिर की किसी भी प्रतिमा को छूने की इजाजत किसी को भी नहीं है।

राजा बली ने एक समय में केरल पर राज्य किया था और उनके राजकाज के वक्त राज्य में सभी लोग खुश, बराबर और समृद्ध थे।  यहां के लोगों का मानना है कि मलयाली कैलेंडर के अनुसार चिंगम महीने में तिरवोणम के दिन ही भगवान विष्णु ने अपना पांचवां वामन अवतार लिया था और राजा बली के राज्य में आए थे । उन्होंने उन्हें पाताल भेज दिया था। राजा बलि को केरल के लोग मावेली यानी महाबली कहते हैं।  केरल के मावेली मंदिर में राजा बलि की पूजा होती है।

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