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Artificial Rain: क्या कृत्रिम बारिश से साफ होगी दिल्ली की हवा? पहला ट्रायल होने पर होगा साफ

Artificial Rain: हर साल बढ़ते वायु प्रदूषण से जूझ रही राजधानी दिल्ली को राहत दिलाने के लिए सरकार ने अब एक नई दिशा में कदम बढ़ाया है — क्लाउड सीडिंग, यानी कृत्रिम बारिश की तकनीक का सहारा। इस ऐतिहासिक पहल का उद्देश्य है जहरीली हवा को साफ करना और दिल्लीवासियों को कुछ राहत देना।

Artificial Rain: क्या कृत्रिम बारिश से साफ होगी दिल्ली की हवा? पहला ट्रायल होने पर होगा साफ

Artificial Rain: हर साल बढ़ते वायु प्रदूषण से जूझ रही राजधानी दिल्ली को राहत दिलाने के लिए सरकार ने अब एक नई दिशा में कदम बढ़ाया है — क्लाउड सीडिंग, यानी कृत्रिम बारिश की तकनीक का सहारा। इस ऐतिहासिक पहल का उद्देश्य है जहरीली हवा को साफ करना और दिल्लीवासियों को कुछ राहत देना।

अब अगस्त-सितंबर में होगा ट्रायल

पहले यह ट्रायल 4 जुलाई से 11 जुलाई 2025 के बीच होना तय था, लेकिन मौसम की अनुकूल स्थिति न होने के कारण अब इसे 30 अगस्त से 10 सितंबर 2025 के बीच करने का फैसला लिया गया है। इस बदलाव की घोषणा मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और पर्यावरण मंत्री मंजींदर सिंह सिरसा ने की।

पर्यावरण मंत्री सिरसा ने बताया कि आईएमडी, आईआईटी कानपुर, और आईआईटीएम पुणे की वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई की शुरुआत में ट्रायल का असर सीमित होता। इसलिए अब इसे मानसून के अंतिम चरण में करने का निर्णय लिया गया है, जब बादलों की स्थिति अधिक अनुकूल रहती है।

क्या है क्लाउड सीडिंग?

क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस या सोडियम क्लोराइड जैसे रसायनों को बादलों में छोड़ा जाता है।
इन हाइज्रोस्कोपिक कणों की मदद से बादलों में जलकणों का संघटन तेज होता है और बारिश की संभावना बढ़ जाती है। बारिश होने से हवा में मौजूद प्रदूषक कण नीचे गिरते हैं, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

कैसे होगा ट्रायल?

बजट: ₹3.21 करोड़

फ्लाइट्स की संख्या: कुल 5

प्रमुख विमान: VT-IIT (Cessna 206-H)

नेतृत्व: IIT कानपुर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग द्वारा

नियंत्रण: DGCA से मंजूरी, सभी सुरक्षा मानकों का पालन

ट्रायल के दौरान कोई फोटोग्राफी नहीं होगी, और प्रतिबंधित क्षेत्रों में उड़ान नहीं भरी जाएगी।

किन इलाकों में होगी कृत्रिम बारिश?

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रायल के लिए उत्तर और बाहरी दिल्ली के इलाके चुने गए हैं:

रोहिणी

बवाना

अलीपुर

बुराड़ी
साथ ही, यूपी के सीमावर्ती क्षेत्र जैसे बागपत और लोनी भी इस पहल से लाभान्वित हो सकते हैं।

कितना असरदार है यह उपाय?

विशेषज्ञों के मुताबिक, क्लाउड सीडिंग तभी प्रभावी होती है जब बादल पहले से मौजूद हों और वायुमंडलीय नमी पर्याप्त हो। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी सफलता दर 60-70% मानी जाती है।
बारिश के जरिए न केवल हवा में मौजूद PM 2.5 और PM 10 जैसे खतरनाक कण नीचे गिरते हैं, बल्कि तापमान में भी थोड़ी राहत मिलती है। इससे सांस संबंधी बीमारियों में भी कमी आने की उम्मीद है।

पहले कहां-कहां हुआ इस्तेमाल?

भारत: मुंबई, बेंगलुरु

अन्य देश: यूएई, चीन, सऊदी अरब
इन जगहों पर क्लाउड सीडिंग तकनीक का प्रयोग पहले हो चुका है और कई बार सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं।

अगर यह प्रयास सफल होता है, तो यह न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे देश के लिए वायु प्रदूषण से लड़ने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। अब सबकी निगाहें अगस्त-सितंबर में होने वाले पहले ट्रायल पर टिकी हैं।

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