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अच्‍छे इकोनॉमिस्‍ट ही नहीं, दलितों के मसीहा भी थे अंबेडकर

नई दिल्‍ली : डॉक्‍टर बी. आर. अंबेडकर को देश में दलितों के मसीहा और संविधान निर्माता के लिए याद किया जाता है। उनका जन्‍म 14 अप्रैल को मध्‍य प्रदेश के महू में हुआ था।

अच्‍छे इकोनॉमिस्‍ट ही नहीं, दलितों के मसीहा भी थे अंबेडकर

उन्‍होंने अपनी पूरी जिंदगी भारत के दलितों के अधिकार दिलाने के लिए लड़े । कुछ सालो बाद उनके राजनीतिक विचार पर कई राजनीतिक दल भी खड़े हुए और पूरे देश में दलित एक राजनीतिक ताकत बन चूका था। लेकिन बेहद कम लोगों को ही पता होगा कि वह देश के बड़े और शुरुआती ट्रेंड इकोनॉमिस्‍ट्स में से एक थे। राजनीति में प्रवेश करने से पहले अमेरिका और बाद में ब्रिटेन में उनकी पूरी ट्रेनिंग इकोनॉमिस्‍ट के आधार पर ही हुई। इस दौरान इंडियन इकोनॉमी को लेकर उनके कई पेपर पब्लिश हुए जो अपने समय में काफी चर्चित भी रहे। उनकी ओर से दिए गए कई आर्थिक विचारों को बाद में भारत की अलग-अलग सरकारों ने लागू किया था।

लंदन स्‍कूल ऑफ इकोनॉमिक्‍स में उनका पेपर इसी मसले पर था जहां उन्‍होंने छोटी जोतों से मैक्सिमम प्रोडक्‍शन लेने के बारे में अपनी राय दी। इकोनॉमिक्‍स में अंडर एम्‍प्‍लॉयमेंट की थियरी भी अंबेडकर ने ही दी है। इसके मुताबिक अगर किसी व्‍यक्ति को रोजगार के लिए मजबूरी में खेती या किसी अन्‍य काम में लगना पड़ रहा है और उसे उसकी क्षमता के मुताबिक काम नहीं मिल रहा है तो इसे अंडर एम्‍प्‍लॉयमेंट माना जाएगा। पर इस बात के लिए ऑथर लेविस को श्रेय दिया गया था ।

अंबेडकर गोल्‍ड स्‍टैंडर्ड की वकालत करने वाले भारतीयों में से एक थे। 1950 के समय में गोल्‍ड स्‍टैंडर्ड दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक बहसों में एक था। जॉन मेनॉर्ड कींस का तर्क था कि भारत जैसे देश को अपनी मुद्रा को गोल्ड स्‍टैंडर्ड पर रखने की जगह गोल्ड एक्सचेंज स्‍टैंडर्ड पर ले जाना चाहिए। जिससे भारत बैंक में सोना रखकर उसी मूल्य की मुद्रा जारी करने वाले देशों की मुद्रा के आकार-प्रकार को ध्यान में रखकर अपने रुपए छापे। और इस काम में मुद्रा जारी करने वाली कई चीजों को ध्यान में रखने के साथ अपने विवेक का भी इस्तेमाल करे। अंबेडकर इस व्यवस्था को रुपए के साथ मुल्क की कमजोरी और मुद्रास्फीति लाने वाला मानते थे।

अंबेडकर ने भारत में खेती करने के तरीके पर खास सिद्धांत दिया। इसके अलावा सरकार लोगों की छोटी-छोटी जमीन को इकट्ठा करके बड़े फॉर्म में तब्‍दील कर दे। उत्‍पादन के बाद किरायेदारी कर आदि देने के बाद बचे उत्पादन को निर्धारित तरीके से आपस में बांटा जाएगा। देश में मजदूरों के बीमा प्रोविडेंट फंड और काम के घंटे तय करने जैसी अनेक व्यवस्थाओं के लिए भी बाबा साहेब की पहल जिम्मेवार थी।

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