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स्कूलों में बच्चों को ‘यौन शिक्षा’ के स्थान पर ‘योग’ एवं ‘अध्यात्म’ की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाय

स्कूलों में बच्चों को ‘यौन शिक्षा’ के स्थान पर ‘योग’ एवं ‘अध्यात्म’ की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाये!

स्कूलों में बच्चों को ‘यौन शिक्षा’ के स्थान पर ‘योग’ एवं ‘अध्यात्म’ की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाय

- डॉ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं

संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

(1) पश्चिमी देशों में यौन शिक्षा के कारण समस्याऐं बढ़ी हैं:-

               पश्चिमी देशों के स्कूलों में यौन शिक्षा दिये जाने के दुष्परिणामों से ये देश जूझ रहे हैं। विश्व भर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। इन देशों में यौन शिक्षा के कारण माता-पिता के जीवित रहते हुए भी लाखों बच्चे अनाथ होकर उन्मुक्त जीवन जीने को विवश हैं, जो कि एड्स जैसे महारोग को बढ़ाने का मुख्य कारण है। इसके अलावा इन देशों में विवाहित जोड़ों में दूसरी स्त्रियों तथा पुरूषों से अवैध संबंध बढ़ाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ चुकी है। इन सभ्य कहे जाने वाले पश्चिमी देशों की नकल करने में भारत के युवा भी बिना सोचे-विचारे पीछे नहीं हंै। उन्मुक्त सेक्स की तरफ बढ़ती प्रवृत्ति के कारण विवाह जैसी पवित्र संस्था का अस्तित्व ही खतरे में पड़ता जा रहा है। 

(2) आधुनिकता के नाम पर भारत में भी पांव पसार रही हैं समस्यायें:-

               इंग्लैंड में मिडलसेक्स यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक बड़ी संख्या में बच्चे की पहुँच पोर्नोग्राफी तक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पोर्नोग्राफी से लोगों का सेक्स और रिश्तों के प्रति नजरिया बदल जाता है और इस वजह से कई बार किशोर बेहद कम उम्र में यौन संबंध बना लेते हैं। विश्व भर में टी.वी. चैनलों, हिंसा तथा सेक्स से भरी फिल्मों का युवा पीढ़ी के चरित्र को बिगाड़ने में प्रमुख योगदान है। आधुनिकता के नाम पर युवक-युवतियों द्वारा बिना विवाह के लिव-इन-रिलेशन में साथ रहने के कारण युवतियों के गर्भवती होने व भ्रण हत्या करवाने आदि की घटनायें लगातार सामने आ रही हैं। हमारा मानना है कि बच्चों की मनः स्थिति का सही आंकलन किये वगैर बाल एवं युवा पीढ़ी को यौन शिक्षा देकर उनके मन-मस्तिष्क एवं चरित्र को पूरी तरह से नष्ट करने की तैयारी की जा रही है।

(3) बच्चों को योग एवं आध्यात्म का ज्ञान दें:- 

               परमात्मा ने मनुष्य और पशु में चार चीजें आहार, निद्रा भय व मैथुन तो समान रूप से दी है किन्तु उचित-अनुचित व गलत-सही का निर्णय करने की क्षमता केवल मनुष्य को ही दी है। यह क्षमता पशु में नहीं है। इसलिए बालक को योग तथा आध्यात्मिक ज्ञान कराने से उसके मस्तिष्क में ईश्वरीय दिव्य प्रवृत्ति पैदा होती है। किन्तु यदि उसे योग तथा आध्यात्मिक ज्ञान न हो तो उसके अंदर पशु प्रवृत्ति बढ़ जाती है और तब मनुष्य उचित-अनुचित व गलत-सही का निर्णय नहीं कर पाता है और मनुष्य का आचरण पशुवत हो जाता है। योग और आध्यात्म दोनों ही मनुष्य के तन और मन दोनों को सुन्दर एवं उपयोगी बनाते हैं। योग का मायने हैं जोड़ना। योग मनुष्य की आत्मा को परमात्मा की आत्मा से जोड़ता है। इसलिए हमारा मानना है कि प्रत्येक बच्चे को बचपन से ही योग एवं आध्यात्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए।

(4) यौन शिक्षा बच्चों को दिग्भ्रमित एवं पथभ्रष्ट करती हैः-

               विकसित देशों के विद्यालयों में यौन शिक्षा प्रदान करने से युवा पीढ़ी तन और मन सेे रोगी बनती जा रही है साथ ही उनका नैतिक तथा चारित्रिक पतन भी हुआ है। इस दुखदायी स्थिति से उबरने का योग तथा आध्यात्मिक शिक्षा ही एकमात्र समाधान है। हमारा मानना है कि यौन शिक्षा बच्चों को दिग्भ्रमित एवं पथभ्रष्ट करती है। यौन शिक्षा अनैतिक सम्बन्धों को बढ़ावा देती है। यौन शिक्षा में आत्मनियंत्रण की शिक्षा नहीं होती। यौन शिक्षा केवल यह बताती है कि यौन क्रिया करते हुए मां को गर्भवती होने से कैसे बचाया जा सकता है। इस विषमसामाजिक स्थिति से अपने बच्चों को बचाने के लिए विकसित देशों के स्कूलों में ‘यौन शिक्षा की जगह पर योग एवं आध्यात्मिक शिक्षा’ अनिवार्य रूप से देने की अविलम्ब आवश्यकता है।

(5) प्रत्येक बच्चे को बचपन से ही योग एवं आध्यात्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए:-

               हमारा मानना है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर को मनुष्य की ओर से अर्पित की जाने वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान सेवा है - (अ) बच्चों की उद्देश्यपूर्ण शिक्षा, (ब) उनके चरित्र का निर्माण तथा (स) उनके हृदय में परमात्मा की शिक्षाओं को जानकर उन पर चलने का बचपन से अभ्यास कराना न कि स्कूलों में यौन शिक्षा देकर बच्चों को तन तथा मन का रोगी बनाना। हमारा यह सामाजिक उत्तरदायित्व है कि हम अभिभावकों के सहयोग से बच्चों को भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार की संतुलित शिक्षा देकर उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करें क्योंकि ऐसे बालक आगे चलकर स्वस्थ व सभ्य समाज की आधारशिला रखेंगे। इसलिए मेरी विश्व के सभी देशों से अनुरोध है कि वे जगतगुरू कहे जाने वाले इस देश की संस्कृति एवं सभ्यता को ध्यान में रखते हुए अपने विद्यालयों में बच्चों को अनिवार्य रूप से यौन शिक्षा की जगह योग एवं आध्यात्म की शिक्षा दें।

(6) भारत ने सारे विश्व को योग का अनमोल उपहार दिया है:-

               यह हमारे लिए बहुत सौभाग्य की बात है। 27 सितम्बर 2014 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए दिए गए प्रस्ताव को 177 देशों ने अत्यंत सीमित समय में पारित कर दिया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया। वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष 21 जून को विश्व के सभी देशों द्वारा इस योग दिवस को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। सिटी मोन्टेसरी स्कूल के 60 से 70 छात्र प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय न्यूयार्क में जाकर अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को योग का प्रदर्शन करके भारत का गौरव बढ़ा रहे हैं।

(7) कोरोना काल में योग-प्राणायाम का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है:-

               आक्सीजन स्तर को सही रखने में योग की महत्वपूर्ण भूमिका है। देशवासियों से नियमित रूप से प्राणायाम करने और आयुर्वेदिक काढ़े का प्रयोग करने का हमारा निवेदन है। नियमित योगाभ्यास से आक्सीजन की कमी नहीं होती है तो तनाव भी दूर रहता है। खासकर योग-प्राणायाम रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी में कारगर सिद्ध होता है। यह जलवायु परिवर्तन से लड़ने में हमारी मदद करता है। आज के समय लोगों ने भौतिक जगत में बहुत ऊँचाई हासिल कर ली है, लेकिन अपने अंदर झाँकने का मौका केवल भारतीय संस्कृति ही देती है। वास्तव में योग एवं अध्यात्म की गुणात्मक शिक्षा में पूरी मानवता को एकजुट करने की शक्ति है।

(8) करो योग रहो निरोग का विचार आज सारे विश्व में गुंज रहा है:-

               हमारा मानना है कि विद्यालयों में बच्चों को बाल्यावस्था से ही योग की शिक्षा दी जानी चाहिए। योग मस्तिष्क, शरीर तथा आत्मा को एकाकार करता है। योग के द्वारा व्यक्ति तनाव मुक्त होकर चरम एकाग्रता की अवस्था को प्राप्त करता है। योग केवल आसन और मुद्राओं तक सीमित नहीं है। यह तो एक आदर्श, सुव्यवस्थित एवं वैज्ञानिक जीवन शैली है जो मानवीय उत्थान की ओर ले जाती है। योग को अपनाकर आज विश्व के करोड़ों व्यक्ति तथा बच्चे तन व मन से स्वस्थ एवं संतुलित जीवन जीने का लाभ उठा रहे हैं। योग के द्वारा व्यक्ति के अशान्त मस्तिष्क में शान्ति के विचार उत्पन्न होते हैं। हमारा विश्वास है कि योग के द्वारा भारतीय संस्कृति के आदर्श वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना साकार होगी। लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाली पूरी दुनिया के लिए भारत नई आशा की किरण है।

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