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संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रजातांत्रिक एवं शक्तिशाली बनाना आवश्यक है

संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल एसेम्बली ने वर्ष 2007 में 15 सितम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय प्रजातंत्र दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया। इस प्रयास का उद्देश्य सदस्य देशों के नागरिकों में प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली के सिद्धान्तों के बारे में जागरूकता पैदा करना है।

संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रजातांत्रिक एवं शक्तिशाली बनाना आवश्यक है

15 सितम्बर - अन्तर्राष्ट्रीय प्रजातन्त्र दिवस पर विशेष लेख

- डा0 जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,

सिटी मोन्टेसरी स्कूल (सीएमएस), लखनऊ

 (1) संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रजातांत्रिक मूल्यों को बढ़ाने की घोषणा की:-

संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल एसेम्बली ने वर्ष 2007 में 15 सितम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय प्रजातंत्र दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया। इस प्रयास का उद्देश्य सदस्य देशों के नागरिकों में प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली के सिद्धान्तों के बारे में जागरूकता पैदा करना है। प्रजातंत्र प्रणाली वे यूनिवर्सल मूल्य हैं जिसके अन्तर्गत प्रत्येक सदस्य देश के नागरिक को अपनी पसंद के अनुसार आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक प्रणाली विकसित करने का स्वतंत्र अधिकार तथा मत होता है। संयुक्त राष्ट्र प्रणाली द्वारा लोकतंत्र को मजबूत करने के प्रयासों को सदस्य देशों की सरकारों द्वारा आम सहमति से अपनाया गया।

(2) लोकतंत्र के मायने है - जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता की सरकार:-

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था कि ‘जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता की सरकार लोकतंत्र हैं अर्थात इसमें जनता ही महत्त्वपूर्ण है। इसलिए लोकतंत्र को जनतंत्र या प्रजातंत्र भी कहा जाता हैं। इसमें जनता के चुने हुए प्रतिनिधि सरकार का गठन करते हैं। इस तंत्र में राज्य की तुलना में व्यक्ति को महत्त्व दिया जाता है। इसमें जनता के लिए शासन है, शासन के लिए शासन नहीं। वास्तव में लोकतंत्र में जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन न करके अपने निर्वाचित

प्रतिनिधियों के द्वारा शासन चलाती है। संसद में बहुमत दल का नेता प्रधानमंत्री बनता है और मंत्रिमंडल बनाता है, जो संसद के समक्ष उत्तरदायी होता है। लोकतंत्र के नाम से ही स्पष्ट है कि यह लोगों की शासन-व्यवस्था है।

(3) लोकतंत्र अधिकतम लोगों के विकास तथा सुख-शान्ति को अधिकतम संरक्षण प्रदान करता है:-

थॉमस हॉब्स ने कहा है कि ‘‘सरकार का निर्माण जनता द्वारा संविधान तथा एक सामाजिक संविदा के तहत होता है।’’ जॉन लॉक का कहना है कि ‘‘सरकार जनता के द्वारा और उसी के हित के लिए होनी चाहिए।’’ प्रसिद्ध उपयोगितावादी दार्षनिक मिल और बेंथम ने पूरी तरह लोकतंत्र का समर्थन किया और उपयोगितावाद के माध्यम से इसे प्रभावी बौद्धिक आधार प्रदान किया। उनके अनुसार, लोकतंत्र उपयोगितावाद अर्थात् अधिकतम लोगों के अधिकतम विकास तथा सुख-शान्ति को अधिकतम संरक्षण प्रदान करता है, क्योंकि लोग अपने शासकों से तथा एक-दूसरे से संरक्षण की अपेक्षा रखते हैं और इस संरक्षण को सुनिष्चित करने के सर्वोत्तम तरीके हैं। जैसे- प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र, संवैधानिक सरकार, नियमित चुनाव, गुप्त मतदान, प्रतियोगी दलीय राजनीति और बहुमत के द्वारा शासन। उदार लोकतंत्र के चरित्रगत लक्षणों में, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, मानवाधिकारों, कानून व्यवस्था, शक्तियों के वितरण आदि के अलावा अभिव्यक्ति, भाषा, सभा, धर्म और संपत्ति की स्वतंत्रता प्रमुख है।

(4) लोकतंत्र मानवजाति के नैतिक विकास में भी सर्वाधिक योगदान करता है:-

जे. एस. मिल ने बेंथम द्वारा लोकतंत्र के पक्ष में प्रस्तुत तर्क में एक और बिन्दु जोड़ते हुए कहा कि लोकतंत्र किसी भी अन्य शासन-प्रणाली की तुलना में मानवजाति के नैतिक विकास में भी सर्वाधिक योगदान करता है। उनकी दृष्टि में लोकतंत्र नैतिक आत्मोत्थान और वैयक्तिक क्षमताओं के विकास एवं विस्तार का सर्वोच्च माध्यम है। उदारवादी विचारक लोकतंत्र का समर्थन करते रहे है और पष्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका ने इसकी स्वीकार्यता को और आगे बढ़ाने का काम किया है।

(5)  आज का युग प्रजातंत्र प्रणाली का युग है:-

प्रजातंत्र में जनता सर्वोपरि है। आज का युग प्रजातंत्र का युग है। तानाशाही अथवा एक व्यक्ति के राजशाही शासन का समय समाप्त हो गया है। संसार के सभी बड़े-बड़े देशों में प्रजातंत्र प्रणाली को अपनाकर सफलता से शासन चलाया जा रहा है। प्रजातंत्र प्रणाली पाश्चात्य सभ्यता की देन है। पश्चिमी देशों में सर्वप्रथम यूनान में इस प्रणाली को अपनाया गया है। सभी शासन-प्रणालियों में श्रेष्ठ मानकर अठारहवी शताब्दी के अंतिम चरण में पश्चिमी देशों में इसका प्रयोग आरम्भ हुआ। इस प्रणाली में शासन देश के संविधान के अनुरूप चलाया जाता है। 

(6) प्रजातंत्र प्रणाली में जनता पूर्ण स्वतंत्रता का उपयोग करती है:-

प्रजातंत्र शासन-प्रणाली के उच्च आदर्श हैं। इसमें प्रजा या जनता को सभी अधिकार दिए गए हैं। जो उसकी भलाई से संबंधित है। इस शासन में जनता पूर्ण स्वतंत्रता का उपयोग करती है। उस पर किसी का दवाब नहीं होता है। वह चाहे किसी भी व्यक्ति तथा बहुमत प्राप्त समूह को चुनकर शासन करने के लिए भेज सकती है। जनता को हर प्रकार की मर्यादित स्वतंत्रता प्राप्त होती है। धार्मिक क्षेत्र में सभी व्यक्ति अपना धर्म पालन करने में स्वतंत्र हैं। सभी नागरिकों को समान अधिकार होते हैं। तात्पर्य यह है कि नागरिक स्वतंत्र है जब तक कि वह दूसरों की स्वतंत्रता में बाधा नहीं डालता है।

(7) लोकतंत्र की पूर्ण सफलता में शिक्षा की अह्म भूमिका होती है:-

प्रजातंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि जनता शिक्षित, जागरूक तथा कर्तव्यपरायण हो। उसे अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान हो। यदि जनता सचेत नहीं है तो उसके प्रतिनिधि मनमानी कर सकते हैं। जनता को चाहिए कि वह किसी अच्छे व्यक्ति को ही अपना वोट दें। लोकतंत्र के चार स्तम्भ हैं:- न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका तथा मीडिया। लोकतंत्र के लिए गुणात्मक शिक्षा बुनियादी तथा मौलिक आवश्यकता है। गुणात्मक शिक्षा द्वारा व्यक्ति लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने की क्षमता अर्जित करता है। लोकतंत्र प्रणाली में ही संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा तथा सुरक्षा की अच्छी व्यवस्था करना सम्भव है।

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