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Eid al Adha 2021 : जानें क्यों मनातें हैं बकरीद का पर्व, और क्यों कहते हैं इसे कुर्बानी का दिन

कुर्बानी के पर्व बकरीद को अरबी में ईद-उल-जुहा (Eid al-Adha) कहते हैं। मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने पुत्र इस्माइल को इसी दिन खुदा के लिए कुर्बान करने जा रहे थे, तभी खुदा ने उनके बेटे को जीवनदान दिया था

Eid al Adha 2021 : जानें क्यों मनातें हैं बकरीद का पर्व, और क्यों कहते हैं इसे कुर्बानी का दिन

Eid al Adha 2021 : जानें क्यों मनातें हैं बकरीद का पर्व, और क्यों कहते हैं इसे कुर्बानी का दिन 

Eid al Adha 2021 :इस बार बकरीद का पर्व 21 जुलाई को है। कुर्बानी के पर्व 'बकरीद' को अरबी में ईद-उल-जुहा (Eid al-Adha) कहते हैं। मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने पुत्र इस्माइल को इसी दिन खुदा के लिए कुर्बान करने जा रहे थे, तभी खुदा ने उनके बेटे को जीवनदान दिया था, इसी वजह से ये दिन उनको समर्पित है । अरबी में 'बक़र' का अर्थ है बड़ा जानवर जो जिबह किया (काटा) जाता है, ईद-ए-कुर्बां का मतलब है 'बलिदान की भावना' और 'क़र्ब' नजदीकी या बहुत पास रहने को कहते हैं।

देतें हैं बकरे की कुर्बानी - 

आपको बता दें कि कुर्बानी के 'बकरे' के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है लोग इस दिन सबसे पहले नए कपड़े पहनते हैं और उसके बाद नमाज अदा करते हैं। और फिर बकरे की कुर्बानी देते हैं। कुर्बानी के बकरे के गोश्त को तीन हिस्सों करने की शरीयत में सलाह है। गोश्त का एक हिस्सा गरीबों में तकसीम किया जाता है, दूसरा दोस्त अहबाब के लिए और वहीं तीसरा हिस्सा घर के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

बकरीद पर्व का महत्व- 

कुर्बानी का मतलब होता है कि इंसान को हमेशा दूसरों की भलाई के लिए काम करना चाहिए। बकरीद लोगों को सच्चाई की राह में अपना सबकुछ कुर्बान करने का नाम है। जो इंसान दूसरे के लिए मन में प्रेम और सदाचार रखता है, वो हमेशा खुदा के करीब होता है। 

क्या है कुर्बानी के पीछे की कहानी? 

हजरत इब्राहिम ने हमेशा लोगों की भलाई के लिए काम किया। 90 साल की उम्र में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। उनके बेटे का नाम इस्माईल था, जिसे वो बेइंतहा प्यार करते थे। लेकिन एक रात उन्हें ख्वाब आया कि उन्हें मानव की भलाई के लिए खुदा की राह में कुर्बानी दो। उन्होंने कई जानवरों की कुर्बानी दी, लेकिन सपने उन्हें आने बंद नहीं हुए।

उनसे सपने में कहा गया कि तुम अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दो, तब उन्होंने इसे खुदा का आदेश माना और इस्माईल की कुर्बानी के लिए तैयार हो गए। उन्हें लगा कि शायद कुर्बानी देते वक्त उनके हाथ कांप जाए और इरादा डोल जाए इसलिए उन्होंने ऐसा कहा जाता है कि हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी लेकिन जब उन्होंने पट्टी खोली तो देखा कि बलि वेदी पर उनका बेटा नहीं, बल्कि दुंबा था और उनक इस्माईल सामने स्वस्थ खड़ा था। तब से ही ये दिन कुर्बानी को समर्पित है।

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