
CRPF की महिला कर्मी का प्रमोशन मात्र इस आधार पर रोक देना कि वह उस वक्त गर्भवती थी। जिससे फोर्स में महिला कर्मियों के साथ लिंग के आधार पर होने वाला भेदभाव जाहिर होता है,जो स्वीकार नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए CRPF की खिंचाई की है। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और नवीन चावला ने सीआरपीएफ द्वारा महिला कर्मी के प्रमोशन पर लगाई गई रोक के ऑर्डर को रद्द करते हुए कहा कि गर्भवती होने के आधार पर भेदभाव कर प्रमोशन पर रोक लगाना छोटी मानसिकता है और यह लिंग के आधार पर भेदभाव करने जैसा है। साथ ही समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। और कहा कि यह महिला कर्मी का हक है कि वह ड्यूटी के दौरान भी मां बन सकती है और ऐसी स्थिति में उसके विभाग द्वारा ही भेदभाव का रवैया अपनाना बेहद शर्मनाक है।
यह याचिका CRPF की महिला कर्मी शर्मिला यादव द्वारा दायर की गई। पीड़िता ने आरोप लगाया कि उसने असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर के पद के लिए होने वाली विभागीय परीक्षा को उत्तीर्ण कर लिया था, लेकिन 2011 में जब प्रमोशन की लिस्ट जारी हुई तो उसमें उसका नाम नहीं था। उसके गर्भवती होने के कारण मेडिकल स्तर पर बाहर निकाल दिया गया था। जिस कारण उसका प्रमोशन रुक गया और उसके सहकर्मी सीनियर बन गए।
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