दलित शब्द को लेकर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने भारतीय मीडिया को एक परामर्श जारी किया है. सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने आग्रह किया है कि अनुसूचित जातियों से जुड़े लोगों के लिए दलित शब्द के इस्तेमाल से बचें. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक परामर्श जारी कर मुम्बई उच्च न्यायालय के एक फैसले के आलोक में यह आग्रह किया I
7 अगस्त को सभी निजी टीवी चैनलों को संबोधित करके लिखे गए पत्र में मुम्बई हाई कोर्ट के जून के एक दिशा-निर्देश का उल्लेख किया गया है I
मुम्बई हाई कोर्ट के दिशा-निर्देश में मंत्रालय को मीडिया को ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करने को लेकर विचार करने को कहा गया था. मुम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने पंकज मेशराम की याचिका पर ये निर्देश दिया था I
हालांकि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के इस परामर्श पर बीजेपी के ही सांसद उदित राज मानते हैं कि इस शब्द के इस्तेमाल पर रोक का कोई अच्छा असर नहीं पड़ेगा. उदित का कहना है कि नाम बदल देने से हालात नहीं बदलते.
उन्होंने कहा-इस पर रोक नहीं लगना चाहिये. लोगों की स्वेच्छा पर छोड़ देना चाहिये. ये शब्द समुदाय की एकता को संबोधित करता है. इससे कोई फायदा नहीं होगा. ये शब्द संघर्ष का प्रतीक बन गया है. इस पर कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिये I
वहीं कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया ने भी कहा है कि ये कोई 'अपमानजनक शब्द' नहीं है. इसके इस्तेमाल पर रोक लगाने की कोई जरूरत ही नहीं है I
बता देें कि दलित शब्द का इस्तेमाल जानकारों के अनुसार, पहली बार 5 दशक पहले 1967 में किया गया था. यह तब इस्तेमाल किया गया था जब इस नाम से एक संगठन खड़ा हुआ. इस शब्द का मतलब उत्पीड़ित है. यानि उत्पीड़न का शिकार I
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