श्रीनगर. शुक्रवार को शिवरात्रि के मौके पर घाटी में एक अजीबो-गरीब और हैरान कर देने वाली घटना देखने को मिली। यहां पर सैंकड़ों वर्ष पुराने नंद किशोर मंदिर में भगवान शिव की पूजा हुई लेकिन यह पूजा कश्मीर के मुसलमानों की ओर से कराई गई। 27 वर्ष पहले कश्मीरी पंडितों को घाटी से निकाल दिया गया था और इस पूजा के जरिए उनसे फिर से घाटी में वापस आने की अपील की गई है।
कश्मीर के संबल इलाके में स्थित नंद किशोर मंदिर के बाहर शुक्रवार को सैंकड़ों मुसलमान इकट्ठा थे। इन मुसलमानों ने मंदिर में शिवरात्रि के मौके पर एक प्रतीकात्मक पूजा कराई। इन मुसलमानों के हाथ में बड़े-बड़े बैनर थे और पंडितों के लिए एकजुटता प्रदर्शित कर रहे थे। यहां से जा चुके कश्मीरी पंडितों से इनकी अपील की थी कि वे फिर से वापस आ जाएं ताकि अगली शिवरात्रि पर हिंदू और मुसलमान साथ मिलकर भगवान शिव की पूजा करें। 42 वर्ष के इम्तियाज हुसैन पैरी सबसे पहले मंदिर आए और उन्होंने यहां से पंडितों को भाईचारे का संदेश दिया। वर्ष 1990 में कश्मीरी पंडितों को मजबूर होकर अपना घर और काम छोड़कर कश्मीर से जाना पड़ गया था। पैरी ने टोपी पहनी हुई थी और उन्होंने सबसे पहले मंदिर की सफाई की और फिर शिवलिंग पर फूल और फल चढ़ाए। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने तरीके से साधारण पूजा की क्योंकि वह मुसलमान हैं और उन्हें नहीं मालूम कि हिंदू पूजा कैसे की जाती है। नंद किशोर मंदिर झेलम नदी के तट पर स्थित है और कश्मीर में इस मंदिर को नंदराजा मंदिर भी कहते हैं। यहां पर एक पवित्र शिवलिंग है जिसे एक बड़े से चिनार की डाली पर रखा गया है और यह पेड़ मंदिर की छत तक जाता है।
संबल में पिछले कई वर्षों से कोई पंडित नहीं है और स्थानीय मुसलमान पास के इलाके से पंडित लेकर आए ताकि पूरे विधि-विधान से पूजा हो सके। पुजारी ने पूजा के लिए जरूरी आरती भी गायी। कश्मीर में महाशिवरात्रि के मौके पर कश्मीरी पंडितों का सबसे बड़ा त्योहार भी होता है जिसे हेरात कहते हैं । पैरी ने बताया कि पिछले 27 वर्षों से इस मंदिर में कोई भी धार्मिक कार्य नहीं हुआ था। कश्मीरी पंडितों से जुड़ी संस्था कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक कश्मीर में चरमपंथ का दौर शुरू होते ही 808 पंडितों के परिवारों जिसमें 3451 लोग थे उन्हें बाहर कर दिया। ये लोग घाटी में 232 अलग-अलग जगहों पर रहते हैं। वर्ष 1990 से 637 कश्मीरी पंडितों की हत्या को चुकी थी। हालांकि राज्य सरकार के पास दर्ज आंकड़ों में यह संख्या सिर्फ 219 है। संबल के रहने वाले जहांगीर अहमद ने बताया जब घाटी में संघर्ष की स्थिति शुरू हुई तो यहां पर 50 से 60 कश्मीरी पंडितों के परिवार थे लेकिन अब सभी यहां से जा चुके हैं और कोई भी कश्मीरी पंडिता नहीं बता है। अहमद के मुताबिक उन्हें अपने पंडित भाईयों के बिना अधूरा-अधूरा सा लगता है और इसलिए ही वह यहां पर आए हैं ताकि उन्हें वापस बुला सकें।
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