भ्रष्टाचार एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिससे दुनिया को कोई भी देश अछूता नहीं है लेकिन गत वर्ष लोगों के सामूहिक प्रयासों ने यह साबित किया कि यदि सब मिलकर इस बुराई के खिलाफ लड़ें तो सफलता जरूर मिलती है। भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी गई इस मुहिम के चलते कई देश इस मामले में गत वर्ष अपनी छवि सुधारने में काफी हद तक कामयाब रहे। हालांकि इस मामले में भारत की स्थिति चीन और रुस से बेहतर होने के बावजूद वर्ष 2014 जैसी ही बनी रही जबकि डेनमार्क सबसे सफल देश रहा। भ्रष्टाचार से जुड़ी गतिविधियों पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के ताजा अध्ययन में यह बात सामने आयी है। संस्था ने विभिन्न देशों में भ्रष्टाचार की स्थिति को मापने के लिए एक पैमाना (इंडेक्स) बना रखा है। इस पैमाने पर किसी भी देश की स्थिति वहां के सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के आधार पर आंकी जाती है। इस इंडेक्स में भारत 38 अंकों के साथ गत वर्ष के अपने 76 वें स्थान पर बना हुआ है हालांकि इसके बावजूद उसकी स्थिति चीन और रुस से बेहतर है।इंडेक्स में चीन 37 अंकों के साथ 83 वें और 29 अंकों के साथ रुस 119 वें स्थान पर है। भ्रष्टाचार को खत्म करने के मामले में सबसे बेहतर प्रदर्शन डेनमार्क का रहा और वह 168 देशों की इस सूची में लगातार दूसरे वर्ष इस इंडेक्स में शीर्ष पर बना रहा जबकि सबसे बुरी हालत ब्राजील की रही है जो 5 अंकों की गिरावट के साथ 7 स्थान नीचे फिसलते हुए 76 वें स्थान पर पहुंच गया है। सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में उत्तर कोरिया और सोमालिया भी रहे।इन दोनों ने इंडेक्स में 8-8 अंक खोए। दूसरी ओर पिछले चार सालों में भ्रष्टाचार की गिरत में बुरी तरह फंसने वाले देशों में लीबिया,आस्ट्रेलिया,ब्राजील,स्पेन और तुर्की का नाम रहा,जबकि यूनान,सेनेगल और ब्रिटेन ने इस दौरान भ्रष्टाचार को खत्म करने में अप्रत्याशित सफलता अर्जित की ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार जो देश भ्रष्टाचार को खत्म करने में काफी हद तक सफल रहे उनमें कयी समानताएं देखी गईं। ऐसे देशेां में प्रेस की स्वतंत्रता,बजट से जुड़ी सूचनाओं तक आम आदमी की आसान पहुंच,सत्ता में बैठे लोगों की ईमानदारी, गरीब और अमीर में भेदभाव नहीं करने वाली और अन्य सरकारी विभागों से पूरी तरह स्वतंत्र न्याय व्यवस्था देखी गई। दूसरी ओर जिन देशों में भ्रष्टाचार का स्तर लगातार बढ़ता रहा वहां गृह युद्ध ,कुशासन, पुलिस और न्यायपालिका जैसी सरकारी संस्थाओं की कमजोरी और प्रेस की स्वतंत्रता का हनन जैसी बातें आम रहीं।
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